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अदालत ने प्राथमिकी रद्द करने की मंदर की याचिका पर सीबीआई से जवाब मांगा

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नयी दिल्ली: 22 अप्रैल (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर और उनके एनजीओ की उस याचिका पर सोमवार को सीबीआई से जवाब मांगा, जिसमें विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन के लिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया गया है।

न्यायमूर्ति विकास महाजन ने याचिका पर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को नोटिस जारी किया और एजेंसी से सुनवायी की अगली तारीख से पहले अपनी स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। सीबीआई ने मौखिक रूप से अदालत को आश्वासन दिया था कि वह अभी मंदर को गिरफ्तार नहीं करेगी।उच्च न्यायालय ने मामले की अगली सुनवायी 29 अगस्त को करना तय किया।

सुनवायी के दौरान, पूर्व आईएएस अधिकारी मंदर और उनके एनजीओ सेंटर ऑफ इक्विटी स्ट्डीज (सीईएस) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नित्या रामकृष्ण ने अदालत से याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने की अंतरिम राहत देने का आग्रह किया।

सीबीआई की ओर से पेश वकील अनुपम शर्मा ने कहा कि सुनवायी की अगली तारीख तक कार्यकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि एजेंसी ने आज तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया है और वह फिलहाल उन्हें गिरफ्तार करने भी नहीं जा रही है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर सीबीआई ऐसे मामलों में गिरफ्तार नहीं करती है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक शिकायत के बाद प्रारंभिक जांच करने के बाद एफसीआरए के विभिन्न प्रावधानों के कथित उल्लंघन के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मंदर और उनके दिल्ली स्थित एनजीओ सीईएस के खिलाफ इस साल फरवरी में प्राथमिकी दर्ज की थी।

फरवरी में जारी सीबीआई के एक बयान के अनुसार, मंदर के आधिकारिक और आवासीय परिसर सहित दिल्ली में दो स्थानों पर छापेमारी की गई।

मंदर केंद्र की पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के दौरान सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्य रहे हैं।

वकील सरीम नावेद के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता की ओर से बिना किसी संज्ञेय अपराध के छह महीने की लंबी प्रारंभिक जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

याचिका में दावा किया गया कि प्राथमिकी अस्पष्ट है और ऐसा लगता है कि दंडात्मक प्रावधानों की सामग्री पर ‘बिना सोचे-समझे’ दर्ज की गई है।

इसमें कहा गया है कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी गईं, तो उन्हें आगे भी उनका उत्पीड़न और उन्हें धमकाया जाना जारी रहेगा, लेकिन अगर उन्हें राहत दी जाती है, तो एजेंसी को कोई नुकसान नहीं होगा।

कथित एफसीआरए उल्लंघन को लेकर सेंटर फॉर इक्विटी स्ट्डीज, अमन बिरादरी ट्रस्ट, ऑक्सफैम इंडिया और एक्शन एड एसोसिएशन के खिलाफ गृह मंत्रालय की एक शिकायत पर सीबीआई ने पिछले साल 13 अप्रैल को प्रारंभिक जांच दर्ज की थी।

प्राथमिकी में कहा गया है कि जांच से पता चला कि सीईएस की स्थापना और पंजीकरण एक ट्रस्ट के रूप में किया गया था और मंदर इसके अध्यक्ष थे ।

सीबीआई के बयान में कहा गया था, ‘‘आरोप है कि एनजीओ ने एफसीआरए, 2010 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए 2020-21 के दौरान अपने एफसीआरए खाते से वेतन/मजदूरी/पारिश्रमिक के अलावा 32.71 लाख रुपये व्यक्तियों के खाते में स्थानांतरित किए। यह भी आरोप है कि एनजीओ ने एफसीआरए, 2010 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अपने एफसीआरए खाते से 10 लाख रुपये की धनराशि भी कंपनियों के माध्यम से स्थानांतरित की थी।’’

गृह मंत्रालय ने पिछले साल 14 जून को सीईएस के एफसीआरए प्रमाणन को छह महीने के लिए निलंबित कर दिया था।

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