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कोलकाता में गणपति पूजा की बढ़ रही लोकप्रियता

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कोलकाता, 31 अगस्त (ए)। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में गणपति बप्पा का बोलबाला है लेकिन उनकी अराधना करने वाले सीमाओं में बंधे हुए नहीं हैं और यही वजह है कि मां काली के दिव्य स्थान कोलकाता में भी गणपति के भक्तों की तादाद लगातार बढ़ रही है।

सार्वजनिक तौर पर गणपति पूजा की शुरुआत स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने तत्कालीन बंबई प्रांत में बंगाल की दुर्गापूजा के तर्ज पर की थी, लेकिन अब गणपति पूजा कोलकाता में भी लोकप्रिय हो रही है जहां पर देवी काली और दुर्गा के भक्तों की बहुलता है।

कोविड-19 महामारी की वजह से लगी पाबंदियों से गत दो साल सादगी से गणेश उत्सव मनाया गया था, लेकिन इस बार इसका आयोजन भव्य तरीके से हो रहा है।

कोलकाता में गणपति की मूर्तियों की भारी मांग है और यही वजह है कि कुम्हारटोली के मूर्तिकार अंतिम समय में आने वाले ऑर्डर को लौटा रहे हैं।

मूर्तिकार सनातन पाल ने कहा, ‘‘ गत 10 साल में शहर और आसपास के इलाकों में गणेश पूजा की लोकप्रियता बढ़ी है। मैं आमतौर पर केवल देवी दुर्गा की प्रतिमा बनाता हूं, लेकिन इस बार मैंने मांग की वजह से कई गणेश प्रतिमाओं को गढ़ा है।’’

मध्य कोलकाता के मुरारीपुकुर के निवासी और गणेश पूजा समिति के सदस्य अभिषेक दास ने बताया कि वर्ष 2008 में उन्होंने 15 दोस्तों के साथ मिलकर गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत की थी।

उन्होंने कहा, ‘‘जब हमने कोलकाता नगर निगम की वार्ड संख्या 14 में गणेश पूजा की शुरुआत की थी, तब कलाकार केवल तीन प्रतिमाएं बनाने थे।’’

दास ने कहा, ‘‘अगर इस साल मूर्तिकारों के कार्यशाला में जाए तो कम से कम 30 से 40 गणेश प्रतिमाओं को देख सकते हैं। गत सालों में इलाके के कई लोगों ने गणेश पूजा आयोजित करने की शुरुआत की है।’’

बेहाला के प्राणश्री पाल्ली गणेश पूजा समिति के जॉयदीप राहा भी इसी तरह का अनुभव साझा करते हैं।

उन्होंने बताया,‘‘ पांच साल पहले तक हमारे इलाके में केवल दो स्थानों पर गणपति की स्थापना होती थी, जिनकी संख्या बढ़कर आठ से नौ हो गई है।’’

शहर के इकबालपुर स्थित राजकीय बालिका डिग्री कॉलेज में समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. अंगसुमन सरकार ने फोन पर ‘पीटीआई-भाषा’ से इस परिपाटी के बारे में कहा, ‘‘ सामाज शास्त्र के पहलु से देखा जाए तो मेरा मानना है कि आयोजनों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि लोग अपनी तमाम समस्याओं से ध्यान हटाना चाहते हैं।’’

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