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ढांचागत समस्याओं के कारण मामले लंबित, अदालत की छुट्टियों के कारण नहीं : न्यायमूर्ति चेलमेश्वर

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पणजी, 18 अगस्त (ए) उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्ती चेलमेश्वर ने शुक्रवार को यहां कहा कि मामलों के लंबित होने का अदालत की छुट्टियों से कोई लेना-देना नहीं है और (न्यायिक) तंत्र की ज्यादातर संरचनात्मक समस्याएं इसका कारण बन रही हैं।.

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर दक्षिण गोवा स्थित इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ लीगल एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईयूएलईआर) में छात्रों के साथ बातचीत कर रहे थे।.उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मामलों के लंबित होने का (अदालत की) छुट्टियों से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन तंत्र में अधिक संरचनात्मक समस्याएं हैं, जो इसकी वजह बन रही हैं।’

पूर्व न्यायाधीश ने विद्यार्थियों से पूछे गये एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘शीर्ष अदालत औसतन हर सप्ताह लगभग 50 से 60 जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करती है। क्या यह वास्तव में जरूरी है कि देश की सर्वोच्च अदालत जमानत याचिकाओं पर विचार करे? उच्च न्यायालय अंतिम अदालत क्यों नहीं हो सकता?’’

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 1950 से पहले तक उच्च न्यायालय अंतिम अदालतें थीं, बहुत कम मामले तत्कालीन प्रिवी काउंसिल में जाते थे।’’

उन्होंने कहा कि जमानत याचिकाओं जैसी वादकालीन विविध याचिकाएं कभी भी प्रिवी काउंसिल नहीं जाती थीं।

उन्होंने पूछा कि अब शीर्ष अदालत सबसे पहले यह कवायद क्यों करती है।

न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय के फैसले में कुछ गलत है, तो गलत आदेश पारित करने वाले न्यायाधीश से निपटने के लिए एक बेहतर तरीका खोजा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि लोग मामलों की सुनवाई के लिए न्यायाधीशों द्वारा अदालत में बिताए गए चार से पांच घंटों को ही उनका कामकाजी समय मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपनी बात कर सकता हूं। मैंने महत्वपूर्ण फैसले लिखने में रातों की नींद हराम कर दी। मेरा एक फैसला 125 से 127 पृष्ठों का था, जिसके लिए मेरे कार्यालय ने लगभग 2000 पन्ने टाइप किये होंगे।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं देर रात तक काम करता था। यह (न्याय संबंधी) काम की प्रकृति है। वे घर पर किये जाने वाले काम को नहीं देखते हैं, लेकिन यह एक गंभीर काम है। इसके लिए कुछ शोध किये जाने की आवश्यकता है।’’

किसी मामले की सुनवाई के दौरान एक न्यायाधीश को भावनात्मक आग्रहों से कैसे निपटना चाहिए, इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि एक न्यायाधीश को अनासक्ति की भावना के साथ काम करना चाहिए।

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