नाबालिग से यौन उत्पीड़न का मामला: दिल्ली सरकार के निलंबित अधिकारी के खिलाफ आरोप बरकरार

राष्ट्रीय
Spread the love

नयी दिल्ली: दो अगस्त (ए)) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के निलंबित अधिकारी प्रेमोदय खाखा के खिलाफ एक नाबालिग लड़की से कई बार दुष्कर्म करने के आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया है।

प्रेमोदय खाखा पर एक नाबालिग लड़की से कई बार दुष्कर्म करने का आरोप है।खाखा और उनके परिवार के लोगों ने एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म के मामले में उनके ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने की याचिका लगाई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने अधिकारी की पत्नी सीमा रानी के खिलाफ नाबालिग लड़की का गर्भपात कराने और सबूतों को गायब करने के आरोपों को भी बरकरार रखा। इसके अलावा, न्यायालय ने अपराध की जानकारी होने के बावजूद रिपोर्ट न करने के लिए पोक्सो अधिनियम की धारा 21 के तहत उनके दो बच्चों और पत्नी के खिलाफ लगाए गए आरोप को भी खारिज करने से इनकार कर दिया।न्यायमूर्ति स्वर्ण काना शर्मा ने 15 जुलाई को पारित और 28 जुलाई को अपने फैसले में कहा, “इस अदालत का यह सुविचारित मत है कि सत्र न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता प्रेमोदय खाखा के खिलाफ आईपीसी की धारा 376(2)(एफ), 376(3), 323 और 354 तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 और 8 के तहत आरोप तय करने के आदेश में कोई विकृति या कानूनी कमी नहीं है।”प्रेमोदय पर एक लड़की के साथ कई बार दुष्कर्म करने का आरोप है। पीड़िता उसकी रिश्तेदार थी और उसी के घर में रहती थी। इस दौरान आरोपी ने कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। इससे लड़की गर्भवती भी हो गई थी, लेकिन प्रेमोदय की पत्नी ने उसका गर्भपात करा दिया। प्रेमोदय ने अपनी याचिका में कहा था कि अगर लड़की के आरोपों को सच मान भी लिया जाए, तो भी वह गर्भवती नहीं हो सकती क्योंकि उसने 2005 में नसबंदी करवा ली थी, जिससे वह कथित तौर पर प्रजनन करने में असमर्थ हो गया था।आरोपी के तर्क पर अदालत ने कहा कि इस संबंध में, सत्र न्यायालय ने सही कहा है कि केवल पुरुष नसबंदी कराने से यह नहीं साबित होता कि वह पीड़िता का यौन उत्पीड़न करने या उसे गर्भवती करने में असमर्थ था। उच्च न्यायालय ने कहा, “यह सही कहा गया है कि एक चिकित्सा प्रक्रिया के रूप में पुरुष नसबंदी अचूक नहीं है, और ऐसे कई मामले हैं, जहां पुरुष के नसबंदी कराने के बावजूद महिला गर्भवती हुई है।”