भारतीय’ घोषित व्यक्ति को विदेशी न्यायाधिकरण दूसरी बार विदेशी घोषित नहीं कर सकता : उच्च न्यायालय

राष्ट्रीय
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गुवाहाटी, सात मई (ए) गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि असम में विदेशी न्यायाधिकरण अगर किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिक घोषित करता है तो न्यायाधिकरण में उसके खिलाफ दूसरी बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और न ही उसे विदेशी घोषित किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति एन कोटिसवारा सिंह और न्यायमूर्ति मालाश्री नंदी की खंडपीठ ने हाल ही में 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। खंडपीठ ने कहा कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ का सिद्धांत (किसी विषय पर अंतिम निर्णय दिए जाने के बाद मामला संबंधित पक्षों द्वारा दोबारा नहीं उठाया जा सकता) राज्य में विदेशी न्यायाधिकरणों (एफटी) पर भी लागू होता है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि उसके समक्ष दायर कई रिट याचिकाओं में जो चीज समान है, वह है ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के सिद्धांत की प्रासंगिकता। याचिकाकर्ताओं ने अब्दुल कुद्दुस के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए दलील दी कि विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष बाद की कार्यवाही ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के सिद्धांत के प्रतिकूल है।

अदालत ने निर्देश दिया कि जब भी कोई याचिकाकर्ता इस आधार पर ‘रेस ज्यूडिकाटा’ की प्रासंगिकता का मुद्दा उठाता है कि उसे पहले की कार्यवाही में एफटी द्वारा भारतीय नहीं घोषित किया गया था तो न्यायाधिकरण को पहले यह निर्धारित करना होगा कि याचिकाकर्ता वही व्यक्ति है या नहीं, जिस पर पहले के मामले में सुनवाई की गई थी।

न्यायाधीशों ने अपने फैसले में कहा, ‘‘इसके लिए, मौखिक दस्तावेजों और सबूतों के रूप में साक्ष्यों की जांच की जा सकती है और यदि न्यायाधिकरण इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि वह व्यक्ति वही था, जिसे लेकर पहले सुनवाई हुई थी तो मामले के गुण-दोष में जाने की कोई जरूरत नहीं है।’’

आदेश में कहा गया है कि ‘रेस ज्यूडिकाटा’ की प्रासंगिकता की दलील पर बाद की कार्यवाही बिना किसी जांच के पहले की इस राय के आधार पर बंद कर दी जाएगी कि वह व्यक्ति विदेशी नहीं था। यह आदेश दिसंबर 2021 में गुवाहाटी उच्च न्यायालय द्वारा पारित इसी तरह के एक फैसले की पुनरावृत्ति है।

एक खंडपीठ ने तेजपुर जेल से हसीना भानु उर्फ ​​​​हसना भानु को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसे 2016 में ‘भारतीय’ और फिर उसी एफटी द्वारा 2021 में ‘विदेशी’ घोषित किया गया था। इसलिए उसके खिलाफ कार्यवाही जारी नहीं रखी जा सकती है, क्योंकि दोनों मामलों में व्यक्ति एक ही था।

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