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सुनवाई होने तक कृषि कानूनों पर सरकार अमल रोकने की संभावना तलाशें:सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली , 17 दिसम्बर (ए)। कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले 21 दिनों से जारी किसान आंदोलन के बीच गुरुवार को तीनों कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई की। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह फिलहाल कानूनों की वैधता तय नहीं करेगा। सीजेआई ने कहा कि किसानों को विरोध करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे लेकिन विरोध का तरीका कुछ ऐसा है जिस पर हम गौर जरूर करेंगे। इस तरह से किसी शहर को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता।
सीजेआई ने कहा कि वह अभी कानूनों की वैधता तय नहीं करेंगे। अदालत ने कहा, ‘आज हम जो पहली और एकमात्र चीज तय करेंगे, वह किसानों के विरोध और नागरिकों के मौलिक अधिकार के बारे में है। कानूनों की वैधता का सवाल इंतजार कर सकता है।
सीजेआई ने कहा, ‘हम कानूनों के विरोध में मौलिक अधिकार को मान्यता देते हैं और इसे रोकने के लिए कोई सवाल नहीं उठाते। केवल एक चीज जिस पर हम गौर कर सकते हैं, वह यह है कि इससे किसी के जीवन को नुकसान नहीं होना चाहिए। हम किसानों के विरोध-प्रदर्शन के अधिकार को सही ठहराते हैं, लेकिन विरोध अहिंसक होना चाहिए। हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे लेकिन विरोध का तरीका कुछ ऐसा है जिस पर हम गौर करेंगे। हम केंद्र से पूछेंगे कि विरोध का तरीका क्या है, इसे थोड़ा बदलने के लिए कहेंगे ताकि यह आंदोलन नागरिकों के अधिकार को प्रभावित न करे। हमें किसानों से हमदर्दी है पर वे अपने विरोध का तरीका बदलें।’
सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘एक विरोध तब तक संवैधानिक होता है जब तक वह संपत्ति या जीवन को खतरे में नहीं डालता। केंद्र और किसानों से बात करनी होगी। हम एक निष्पक्ष और स्वतंत्र समिति के बारे में सोच रहे हैं, जिसके समक्ष दोनों पक्ष अपना पक्ष रख सकें। समिति एक रास्ता देगी जिसका पालन किया जाना चाहिए। इस बीच विरोध जारी रह सकता है। स्वतंत्र समिति में पी साईनाथ, भारतीय किसान यूनियन और अन्य सदस्य हो सकते हैं। आप (किसान) हिंसा को भड़का नहीं सकते और इस तरह से एक शहर को ब्लॉक (अवरुद्ध) नहीं कर सकते। दिल्ली को ब्लॉक करने से शहर के लोग भूखे रह सकते हैं। आपके (किसानों) उद्देश्य को पूरा करने के लिए बात की जा सकती है। केवल विरोध में बैठने से मदद नहीं मिलेगी।’
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, ‘उनमें से किसी ने भी फेस मास्क नहीं पहना है, वे बड़ी संख्या में एक साथ बैठते हैं। कोविड-19 चिंता का एक विषय है, वे गांवों का दौरा करेंगे और इसे वहां फैलाएंगे। किसान दूसरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते।’
पंजाब सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा, ‘कई किसान पंजाब से हैं। राज्य को अदालत के इस सुझाव पर कोई आपत्ति नहीं है कि लोगों का एक समूह किसानों और केंद्र के साथ बातचीत करेगा। यह किसानों और केंद्र को तय करना है कि समिति में कौन होगा।’
सीजेआई बोबडे ने कहा, ‘हम भी भारतीय हैं, हम किसानों की दुर्दशा से परिचित हैं और हम उनसे सहानुभूति रखते हैं। आपको (किसानों को) केवल विरोध प्रदर्शन के तरीके को बदलना होगा। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि आप अपने मामले को निपटाएं और इस तरह हम एक समिति बनाने के बारे में सोच रहे हैं।’ 
सीजेआई का कहना है कि नोटिस विरोध करने वाले सभी किसानों के निकायों को भेजा जाना चाहिए और सुझाव दिया कि इस मामले को शीतकालीन अवकाश के दौरान अदालत की अवकाश पीठ के समक्ष रखा जाए। इसपर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उन सभी किसान प्रतिनिधियों को नोटिस दिया जाना चाहिए जो अब तक सरकार की वार्ता का हिस्सा रहे हैं।
अदालत ने केंद्र से कहा कि वह कानून को होल्ड पर रखने की संभावनाएं तलाशे। सर्वोच्च न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि क्या सरकार अदालत को यह आश्वासन दे सकती है कि वह कानून के क्रियान्वयन पर तब तक कोई कार्यकारी कार्रवाई नहीं करेगी, जब तक कि अदालत इस मामले की सुनवाई न करे। इसपर अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘किस तरह की कार्यकारी कार्रवाई? यदि ऐसा होता है तो किसान चर्चा के लिए नहीं आएंगे।’ जवाब में सीजेआई ने कहा, यह चर्चाओं को संभव बनाने के लिए है।

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