नयी दिल्ली: 31 मई (ए)।
मुख्य विपक्षी दल ने यह भी कहा कि कारगिल समीक्षा समिति की तर्ज पर एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति द्वारा देश की मौजूदा रक्षा तैयारियों की व्यापक समीक्षा कराई जाए।
जनरल अनिल चौहान ने पाकिस्तान के साथ हालिया सैन्य संघर्ष में विमान के नुकसान की बात स्वीकार की है, लेकिन छह भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने के इस्लामाबाद के दावे को ‘‘बिल्कुल गलत’’ बताया।
चौहान ने ‘ब्लूमबर्ग टीवी’ को दिये साक्षात्कार में कहा कि यह पता लगाना अधिक महत्वपूर्ण है कि विमान का नुकसान क्यों हुआ, ताकि भारतीय सेना रणनीति में सुधार कर सके।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘सिंगापुर में एक साक्षात्कार में सीडीएस द्वारा की गई टिप्पणियों के मद्देनजर, कुछ बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न हैं जिन्हें पूछे जाने की आवश्यकता है। ये तभी पूछे जा सकते हैं जब संसद का विशेष सत्र तत्काल बुलाया जाए।’
उन्होंने केंद्र की (नरेन्द्र) मोदी सरकार पर देश को गुमराह करने का आरोप लगाया।
खरगे ने कहा, ‘हमारी वायुसेना के पायलट दुश्मन से लड़ते हुए अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे। हमें कुछ नुकसान हुआ है, लेकिन हमारे पायलट सुरक्षित हैं…हम उनके दृढ़ साहस और बहादुरी को सलाम करते हैं। हालांकि, एक व्यापक रणनीतिक समीक्षा समय की मांग है।’
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी कारगिल समीक्षा समिति की तर्ज पर एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति द्वारा हमारी रक्षा तैयारियों की व्यापक समीक्षा की मांग करती है।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘29 जुलाई 1999 को, (तत्कालीन) वाजपेयी सरकार ने भारत के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के. सुब्रमण्यम, जिनके पुत्र अब हमारे विदेश मंत्री हैं, की अध्यक्षता में कारगिल समीक्षा समिति का गठन किया था। यह कारगिल युद्ध समाप्त होने के ठीक तीन दिन बाद की बात है।’
उन्होंने कहा कि इस समिति ने पांच महीने बाद अपनी विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी और ‘फ़्रॉम सरप्राइज़ टू रेकनिंग’ शीर्षक वाली रिपोर्ट को आवश्यक संशोधनों के बाद 23 फरवरी 2000 को संसद के दोनों सदनों के पटल पर रखा गया।
रमेश ने सवाल किया कि क्या अब सीडीएस ने सिंगापुर में जो खुलासा किया है, उसके आलोक में मोदी सरकार भी वैसा ही कदम उठाएगी?
कांग्रेस नेता ने एक अन्य पोस्ट में दावा किया, ’11वर्षों से जारी अघोषित आपातकाल पर यह एक असाधारण स्थिति है कि प्रधानमंत्री न तो सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता करते हैं, न ही संसद को भरोसे में लेते हैं – लेकिन देश को ऑपरेशन सिंदूर के पहले चरण की जानकारी सिंगापुर में दिए गए सीडीएस के साक्षात्कार के जरिए मिलती है।’
उन्होंने सवाल किया कि क्या प्रधानमंत्री विपक्षी नेताओं को पहले ही विश्वास में नहीं ले सकते थे?