अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र कुमार खरता एक मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें आरोपियों पर 21-22 जुलाई, 2012 की मध्यरात्रि को जामा मस्जिद के पास उर्दू बाजार इलाके में गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने, पथराव करने, दंगा और आगजनी करने, थाने में आग लगाने और चोरी करने का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने 24 सितंबर को कहा कि अभियोजन पक्ष के कई गवाहों में से कोई भी किसी भी आरोपी की पहचान नहीं कर पाया, न ही उन्होंने अपनी व्यक्तिगत भूमिका के बारे में बताया, जिससे अभियोजन पक्ष के आरोपों पर “गंभीर संदेह” पैदा होता है।
अदालत ने कहा, “अभियोजन पक्ष के अनुसार, कथित घटना लंबे समय तक जारी रही और कई थाना प्रभारी और अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी घटनास्थल पर पहुंचे, लेकिन किसी भी पुलिस अधिकारी ने अपने मोबाइल फोन से घटना की वीडियोग्राफी नहीं की, जिसके माध्यम से आरोपी व्यक्तियों के चेहरों का मिलान या पहचान की जा सकती थी।
लिहाजा इससे अभियोजन पक्ष के आरोपों पर गंभीर संदेह पैदा होता है।” अदालत ने यह टिप्पणी करने के बाद 16 आरोपियों को बरी कर दिया।