अदालत ने बलात्कार के आरोप से सैन्य अधिकारी को ‘बाइज्जत’ बरी किया

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: सात फरवरी (ए) दिल्ली की एक अदालत ने सेना के एक मेजर को बलात्कार के आरोपों से ‘बाइज्जत’ बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ प्राथमिकी “झूठी” थी और गलत मंशा से दर्ज कराई गई थी।महिला के खिलाफ झूठी गवाही का मामला दर्ज करने का आदेश देते हुए, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पवन कुमार ने कहा कि अधिकारी “बलात्कार की झूठी कहानी” पर आधारित ऐसे जघन्य अपराध के लिए “मुकदमे के आघात” से गुजरा।

अदालत ने कहा, ‘‘आरोपी के खिलाफ गुप्त उद्देश्यों से झूठी प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी और वह ‘बाइज्जत’ बरी होने का हकदार है। आरोपी को उन अपराधों से बाइज्जत बरी किया जाता है, जिसके लिए वह मुकदमे का सामना कर रहा था।’’शिकायतकर्ता अधिकारी की घरेलू सहायिका थी, जो उनके घर के ‘सर्वेंट क्वार्टर’ में रहती थी। उसने आरोप लगाया कि सैन्य अधिकारी ने 2018 में 12-13 जुलाई की रात को उसके साथ बलात्कार किया। यह भी रिकॉर्ड में आया कि महिला के पति को उसी रात फांसी पर लटका हुआ पाया गया था और जांच रिपोर्ट में इसे आत्महत्या का मामला बताया गया था।

अदालत ने तीन जनवरी को अपने फैसले में कहा, ‘‘तथ्यों और साक्ष्यों पर सावधानीपूर्वक गौर करने और स्थापित कानूनी प्रावधानों के मद्देनजर यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि शिकायतकर्ता की गवाही में कई विरोधाभास और बदलाव हैं। शिकायतकर्ता ने जांच और सुनवाई के दौरान अपने बयानों में एकरूपता नहीं दिखाई।’’

अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता की अपुष्ट एकमात्र गवाही के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराना तर्कसंगत नहीं होगा। अदालत ने यह भी कहा कि सेना में कार्यरत आरोपी को “झूठे मुकदमे” के कारण अपनी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति हुई है।

आरोपी की तरफ से अधिवक्ता भरत चुघ पेश हुए।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा, ‘‘अदालतें केवल पीड़ितों के संवैधानिक और कानूनी अधिकारों की रक्षक नहीं हैं, बल्कि वे पीड़ितों को न्याय की रामबाण औषधि देने के लिए मरहम लगाने वाले के रूप में कार्य करती हैं। पीड़ित शब्द केवल शिकायतकर्ता तक ही सीमित नहीं है, ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां आरोपी वास्तव में पीड़ित हो सकता है।’’

अदालत ने कहा कि प्रतिष्ठा बनाने में जीवन भर लग जाता है, लेकिन ‘‘कुछ झूठ’’ इसे नष्ट कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि केवल बरी कर देने से (आपराधिक आरोपों से आरोपी को बिना शर्त बरी कर देने से) आरोपी द्वारा झेली गई ‘‘पीड़ा’’ की भरपाई नहीं हो सकती।

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