लखनऊ: 21 सितंबर (ए)
अदालत ने इस मामले में राठौर के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द करने की उनकी याचिका खारिज कर दी है और उन्हें जांच में पुलिस का सहयोग करने का भी आदेश दिया है। इसके लिए उन्हें 26 सितंबर को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होना होगा।
न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान और न्यायमूर्ति एस.क्यू.एच. रिजवी की पीठ ने मुकदमा निरस्त करने की नेहा की याचिकाओं को 19 सितंबर को खारिज करते हुए फैसला सुनाया।
पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि जहां सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, वहीं संविधान में इसकी कुछ सीमाएं भी निर्धारित हैं।
पीठ ने कहा, ”मुकदमे में लगाये गये आरोपों और केस डायरी के संबंधित हिस्से को देखने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्राथमिकी और अन्य सामग्री में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध को जाहिर करते हैं। ऐसे में पुलिस अधिकारियों द्वारा जांच किया जाना वाजिब है।”
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ”हमारे सामने प्रस्तुत केस डायरी से पता चलता है कि याचिकाकर्ता द्वारा लिखे गए पोस्ट प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के खिलाफ हैं। भारत के प्रधानमंत्री के नाम का इस्तेमाल अपमानजनक और असम्मानजनक तरीके से किया गया है। याचिकाकर्ता ने ऐसी टिप्पणियों में धार्मिक पहलू और बिहार चुनाव के कोण का इस्तेमाल किया है और प्रधानमंत्री का नाम लेकर उन पर आरोप लगाया है। साथ ही कहा है कि भाजपा सरकार अपने निहित स्वार्थ के लिए हजारों सैनिकों के जीवन का बलिदान कर रही है और देश को पड़ोसी देश के साथ युद्ध में धकेल रही है।”
याचिका में 27 अप्रैल 2025 को लखनऊ के हजरतगंज थाने में नेहा राठौर के खिलाफ दर्ज मुकदमे को रद्द करने और पुलिस को इस मामले में उन्हें गिरफ्तार करने से रोकने की मांग की गई थी। उनकी ओर से तर्क दिया गया था कि प्राथमिकी उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए दर्ज की गई है।
शासकीय अधिवक्ता वी.के. सिंह ने राठौर की दलीलों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के साथ ही, पाकिस्तान के साथ तनाव चरम पर होने के दौरान राष्ट्र-विरोधी बयान देकर संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग किया है।
सिंह ने कहा कि राठौर के बयानों की पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर काफी तारीफ की गयी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बिहार चुनाव को लेकर राठौर के बयानों ने भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को लांघा है।
सिंह ने कहा, ”मौजूदा मामले में मुकदमे के आरोप प्रथम दृष्टया उन अपराधों का आधार प्रस्तुत करते हैं, जिनके तहत प्राथमिकी दर्ज हुई है। साथ ही, जांच एजेंसी द्वारा एकत्र सामग्री संज्ञेय अपराध की ओर संकेत करती है।”