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हाईकोर्ट ने विधायक के कथित इशारे पर पारित आदेश रद्द किया,जानें पूरा मामला

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प्रयागराज, 11 जून (ए) उत्तर प्रदेश में मदरसा के एक शिक्षक की नियुक्ति कथित रूप से जनप्रतिनिधि के इशारे पर सरकार के विशेष सचिव द्वारा रद्द किये जाने के फैसले को निरस्त करते हुये इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह खेदपूर्ण है कि जनप्रतिनिधि सरकारी अधिकारी को अवैध आदेश पारित करने के लिए विवश करते हैं और अधिकारी बिना किसी आपत्ति के उनकी अवैध बातों का पालन करते हैं।

बशारत उल्लाह नाम के व्यक्ति की रिट याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने उत्तर प्रदेश सरकार में विशेष सचिव द्वारा आठ सितंबर, 2021 को पारित आदेश रद्द कर दिया। इसी आदेश के तहत याचिकाकर्ता को बस्ती जिले के एक मदरसा के प्रधानाचार्य पद से हटाया गया था।

अदालत ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाय और उसकी बकाया तनख्वाह का छह सप्ताह के भीतर भुगतान किया जाए।

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता को बस्ती के मदरसा दारुल उलूम अहले सुन्नत बदरूल उलूम में 2019 में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया गया था। यह मदरसा राज्य सरकार के अनुदान सहायता वाले मदरसों की सूची में आता है।

इससे पूर्व, यचिकाकर्ता ने गोंडा में दारुल उलूम अहले सुन्नत मदरसा में पांच साल तक सहायक अध्यापक के तौर पर काम किया था। उनके अनुभव के आधार पर उन्हें उक्त मदरसे में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त किया गया।

इसके उपरांत इस नियुक्ति के खिलाफ एक शिकायत की गई और राज्य सरकार ने आरोपों की जांच का निर्देश दिया। दावा है कि एक स्थानीय विधायक ने मुख्यमंत्री कार्यालय को पत्र भेजकर आरोप लगाया था कि 23 जुलाई, 2020 को जारी नियुक्ति की मंजूरी का सशर्त आदेश, नियमों के विरुद्ध है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए।

इस पत्र के आधार पर प्रदेश सरकार के विशेष सचिव ने याचिकाकर्ता की नियुक्ति की मंजूरी रद्द कर दी। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में इस आदेश को यह कहते हुए चुनौती दी कि बिना किसी जांच के और बगैर आरोप सिद्ध किए उसकी नियुक्ति रद्द की गई। यह आदेश एक विधायक के इशारे पर पारित किया गया।

अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि एक स्थानीय विधायक संजय प्रताप जायसवाल और तत्कालीन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा की गई शिकायत पर विशेष सचिव द्वारा विचार कर याचिकाकर्ता की नियुक्ति की मंजूरी रद्द करने का निर्णय कर लिया गया।

अदालत ने पांच मई को अपने आदेश में कहा, “प्रतिवादियों के आचरण में अवैधता, तथ्यों से प्रकट होती है। नियुक्ति रद्द करने का आदेश, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का घोर उल्लंघन है और इस प्रकार से यह आदेश रद्द किया जाता है।”

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