नयी दिल्ली: नौ अगस्त (ए)
शीर्ष अदालत ने मंदिर के दिन-प्रतिदिन के कामकाज का प्रबंधन करने के लिये इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक कुमार की अध्यक्षता में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन भी किया।न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 को दी गई चुनौतियों पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि प्रभावित पक्ष उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
पीठ ने निर्देश दिया, ‘‘इस स्तर पर, हमने गौर किया है कि अध्यादेश को याचिकाकर्ताओं की चुनौती पर उचित निर्णय में निस्संदेह कुछ समय लगेगा। इसलिए, हम अध्यादेश के प्रावधानों के क्रियान्वयन पर उस हद तक रोक लगाना उचित समझते हैं, जो राज्य को मंदिर के मामलों के प्रबंधन के लिए एक न्यास गठित करने की शक्तियां प्रदान करते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि इसलिये श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास का गठन तब तक स्थगित रखा जाए, जब तक कि उच्च न्यायालय इस अध्यादेश की वैधता से संबंधित सवालों का अंतिम रूप से समाधान नहीं कर देता।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि उसका अंतरिम निर्देश राज्य को विधानसभा में अध्यादेश के अनुसमर्थन से नहीं रोकेगा, लेकिन ऐसा करना उस कार्यवाही के परिणाम के अधीन होगा जिसके लिए प्रभावित व्यक्तियों और याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा गया है।
शीर्ष अदालत ने शनिवार को अपलोड किए गए अपने विस्तृत आदेश में प्रतिष्ठित मंदिर के दिन-प्रतिदिन के मामलों को देखने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अशोक कुमार की अध्यक्षता में 12 सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त समिति का भी गठन किया।
इसने कहा, ‘‘हम इस बात से भी अवगत हैं कि हमारे निर्देशों का सारांश प्रभावी रूप से संबंधित मंदिर के प्रबंधन को एक बार फिर अधर में छोड़ देगा, क्योंकि मंदिर प्रबंधन की तदर्थ व्यवस्था वर्षों से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में पूरी तरह से अप्रभावी और अक्षम रही है।’’
पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि पिछले प्रशासनिक गतिरोधों और आपसी खींचतान ने मंदिर की समस्याओं को और बदतर बना दिया है, जिससे श्रद्धालुओं को बहुत परेशानी हो रही है।’’
पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री से पता चलता है कि मंदिर को सैकड़ों करोड़ रुपये का पर्याप्त दान मिलने के बावजूद, मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं को आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्रमिक प्रबंधन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया और गोस्वामी सेवायत गुटों में बंटे हुए हैं और दीवानी अदालतों में मुकदमे लड़ रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने अपने 15 मई के आदेश में भी संशोधन किया, जिसमें मथुरा के वृंदावन में श्री बांके बिहारी मंदिर गलियारा विकसित करने की राज्य की योजना को हरी झंडी दी गई थी और सरकार को मंदिर निधि का उपयोग करके श्रद्धालुओं के लिए एक ‘होल्डिंग एरिया’ के रूप में विकसित करने के वास्ते पांच एकड़ भूमि अधिग्रहित करने की अनुमति दी गई थी।
पीठ ने कहा, ‘‘हमें ऐसा लगता है कि समन्वय पीठ द्वारा दिए गए आदेश में कुछ संशोधनों/स्पष्टीकरणों की आवश्यकता है। यह आदेश कथित तौर पर मंदिर निधि के उपयोग के माध्यम से मंदिर के आसपास के क्षेत्र के पुनर्विकास का निर्देश देता है।’’
उसने कहा, ‘‘हालांकि, हम पाते हैं कि ऐसे निर्देशों में एक बुनियादी प्रक्रियात्मक कमी है – मंदिर का प्रशासन चलाने वाले सेवायत गोस्वामी सहित प्रमुख प्रभावित पक्षों को उक्त आदेश पारित करने से पहले नहीं सुना गया था।’’
पीठ ने कहा, ‘‘इसके अलावा, हम देखते हैं कि उच्च न्यायालय ने आठ नवंबर, 2023 के अपने फैसले के तहत प्रस्तावित पुनर्विकास योजना के हिस्से के रूप में भूमि अधिग्रहण के लिए मंदिर के धन का उपयोग करने के राज्य के अनुरोध को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था।’’पंद्रह मई के आदेश में संशोधन का निर्देश देते हुए पीठ ने कानूनी स्थिति को यथास्थिति में बहाल करने का आदेश दिया।