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अदालत ने आरोपी का नार्को परीक्षण कराने की अनुमति नहीं दी, कहा : चुप रहना मौलिक अधिकार

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मुंबई, 25 अगस्त (ए) एक स्थानीय मजिस्ट्रेट अदालत ने रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के बर्खास्त कांस्टेबल चेतनसिंह चौधरी का नार्को परीक्षण कराने के लिए अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा कि चुप रहना किसी आरोपी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।.

चौधरी पर चलती ट्रेन में चार लोगों की गोली मारकर हत्या करने का आरोप है।.

अदालत ने 11 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि किसी आरोपी को केवल ‘सुचारू जांच’ के लिए ऐसे परीक्षणों के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। अदालत का विस्तृत आदेश शुक्रवार को उपलब्ध हुआ।

सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) ने चौधरी का नार्को परीक्षण, ब्रेन मैपिंग और पॉलीग्राफ जैसी जांच के लिए बोरीवली मजिस्ट्रेट अदालत से अनुमति मांगी थी।

चौधरी फिलहाल न्यायिक हिरासत में पड़ोसी ठाणे जिले की एक जेल में बंद है।

अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि उस पर गंभीर अपराध का आरोप है और जांच पूरी करने के लिए नार्को और अन्य परीक्षण जरूरी हैं।

चौधरी के वकील सुरेंद्र लांडगे, अमित मिश्रा और जयवंत पाटिल ने आवेदन का विरोध करते हुए दलील दी कि नार्को परीक्षण मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और यदि कोई आरोपी यह परीक्षण कराने के लिए तैयार नहीं है तो यह परीक्षण नहीं किया जा सकता है।

मजिस्ट्रेट ने उच्चतम न्यायालय के एक आदेश का जिक्र करते हुए कहा, ‘अगर हम पूरे फैसले का गहराई से अध्ययन करें, तो इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि केवल बाहरी परिस्थितियों में, वह भी आरोपी की सहमति के साथ, परीक्षण कराया जा सकता है। लेकिन, आरोपी को उसकी सहमति के बिना परीक्षण के लिए बाध्य करने की कोई गुंजाइश नहीं है। आरोपी अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए इस तरह के परीक्षणों के लिए तैयार नहीं है, इसलिए आवेदन खारिज कर दिया जाना चाहिए।”

अदालत ने यह भी कहा कि चुप रहना आरोपी का मौलिक अधिकार है।

यह घटना 31 जुलाई को महाराष्ट्र में पालघर रेलवे स्टेशन के पास जयपुर-मुंबई सेंट्रल एक्सप्रेस में हुई थी। आरोप है कि चौधरी (34) ने अपने वरिष्ठ अधिकारी सहायक उप-निरीक्षक टीका राम मीना और तीन यात्रियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

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