उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश को ‘विरोधाभासी’ करार दिया

राष्ट्रीय
Spread the love
Facebook
Twitter
Linkedin
Pinterest
Whatsapp

नयी दिल्ली, 26 जुलाई (ए) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को देखकर ‘‘आश्चर्यचकित’’ है, जिसमें एक आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत का अनुरोध करने वाले पांच आरोपियों की याचिका खारिज कर दी, लेकिन उन्हें दो महीने के लिए दंडात्मक कार्रवाई से सरंक्षण प्रदान किया।.

उच्चतम न्यायालय ने इसे ‘‘अपने आप में विरोधाभासी’’ करार दिया है।.उच्च न्यायालय ने पिछले साल मई में उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत सहारनपुर जिले में दर्ज एक मामले में पांच आरोपियों द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

आवेदन खारिज होने के बाद, आवेदकों के वकील ने उच्च न्यायालय के समक्ष प्रार्थना की थी कि उन्हें मुक्त किये जाने के लिये आवेदन दायर करने की स्वतंत्रता दी जाए और इसके निस्तारण तक आरोपियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न की जाए।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में इस अनुरोध को अनुमति प्रदान की।

उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ राज्य की अपील पर शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने सुनवाई की।

पीठ ने 18 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ‘‘हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को देखकर आश्चर्यचकित हैं।’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष आरोपियों द्वारा दायर आवेदन का राज्य सरकार के वकील ने इस आधार पर पुरजोर विरोध किया था कि आरोपियों का आपराधिक इतिहास है और उनके खिलाफ लुक आउट नोटिस भी जारी किए गए थे।

इसमें कहा गया कि उच्च न्यायालय ने पक्षों को सुनने के बाद अग्रिम जमानत के लिए उनकी अर्जी खारिज कर दी थी। हालांकि, उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत का आवेदन खारिज करते हुए उसी समय उन्हें दो महीने की अवधि के लिए दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण प्रदान किया।

पीठ ने कहा, ‘‘इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि उच्च न्यायालय द्वारा विरोधाभासी आदेश पारित किए गए हैं।’’

पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश के उस हिस्से को रद्द कर दिया जिसमें निर्देश दिया गया था कि इन आरोपियों के खिलाफ दो महीने तक कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।

Facebook
Twitter
Whatsapp