नयी दिल्ली: 12 सितंबर (ए)
राष्ट्रीय दलों में, 20 प्रतिशत मौजूदा प्रतिनिधियों की पृष्ठभूमि वंशवादी है। कांग्रेस का हिस्सा सबसे अधिक 32 प्रतिशत है, इसके बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का 18 प्रतिशत है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) का हिस्सा सबसे कम है, जिसके केवल आठ प्रतिशत सदस्य राजनीतिक परिवारों से हैं।रिपोर्ट के मुताबिक, “राष्ट्रीय दलों में 3,214 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों का विश्लेषण किया गया है और इनमें से 657 (20 प्रतिशत) वंशवादी पृष्ठभूमि वाले हैं. कांग्रेस के 32 प्रतिशत मौजूदा सांसद, विधायक और विधान पार्षद वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं, जबकि भाजपा के 18 प्रतिशत सांसद, विधायक और विधान पार्षद वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं. वहीं माकपा जैसी छोटी पार्टियों में वंशवादी प्रभाव बहुत कम है और उनके केवल 8 प्रतिशत सांसद, विधायक और विधान पार्षद वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं.”एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (Association for Democratic Reforms) और नेशनल इलेक्शन वॉच (National Election Watch) की रिपोर्ट में पाया गया कि सभी मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 1,107 (21 प्रतिशत) वंशवादी पृष्ठभूमि वाले हैं. राज्य विधानसभाओं में यह अनुपात सबसे कम 20 प्रतिशत है, जबकि लोकसभा, राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों में क्रमशः 31 प्रतिशत, 21 प्रतिशत और 22 प्रतिशत वंशवादी प्रतिनिधित्व है.
राज्यों के विश्लेषण में सामने आया है कि उत्तर प्रदेश 141 वंशवादी पृष्ठभूमि के सासंदों, विधायकों और विधान परिषद के सदस्यों की संख्या के साथ शीर्ष पर है, उसके बाद महाराष्ट्र (129), बिहार (96) और कर्नाटक (94) का स्थान है.
राज्यों में कुल संख्या के हिसाब से उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां विश्लेषण किए गए 604 सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 141 (23 प्रतिशत) वंशवादी राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले हैं. महाराष्ट्र में 403 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 129 (32 प्रतिशत) वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, “बिहार में, 360 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 96 (27 प्रतिशत) वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं, जबकि कर्नाटक में 326 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 94 (29 प्रतिशत) वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं.”
अनुपात के हिसाब से आंध्र प्रदेश सबसे आगे है, जहां पर 34 प्रतिशत मौजूदा सांसद, विधायक और विधान पार्षद राजनीतिक परिवारों से संबंधित हैं, उसके बाद महाराष्ट्र (32 प्रतिशत) और कर्नाटक (29 प्रतिशत) का स्थान है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “जब हम अनुपात के लिहाज से बड़े राज्यों को देखते हैं तो आंध्र प्रदेश में वंशवादी प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा है, जहां 255 मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 86 (34 प्रतिशत) राजनीतिक परिवारों से आते हैं.
इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान है, जहां 403 सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 129 (32 प्रतिशत) की पृष्ठभूमि वंशवादी है और कर्नाटक में 326 सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 94 (29 प्रतिशत) की पृष्ठभूमि वंशवादी है. ये आंकड़े, खासकर राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों में, वंशवादी राजनीति के निरंतर और व्यापक प्रचलन को उजागर करते हैं.”यह रिपोर्ट क्षेत्रीय पैटर्न पर प्रकाश डालती है, जहां वंशवादी राजनीति आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे दक्षिणी राज्यों में गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं, जबकि पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में इसमें ज्यादा भिन्नता दिखाई देती है. उदाहरण के लिए, बिहार में 27 प्रतिशत वंशवादी प्रतिनिधित्व है, जबकि असम में केवल 9 प्रतिशत है.राज्य स्तरीय दलों में वंशवाद का स्तर और भी ऊंचा है, जहां एनसीपी (शरदचंद्र पवार) और जेकेएनसी में 42-42 प्रतिशत वंशवादी प्रतिनिधित्व दर्ज किया गया है, उसके बाद वाईएसआरसीपी (38 प्रतिशत) और टीडीपी (36 प्रतिशत) का स्थान है. दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस (10 प्रतिशत) और अन्नाद्रमुक (4 प्रतिशत) में वंशवाद का स्तर अपेक्षाकृत कम है.
गैर-मान्यता प्राप्त दल और निर्दलीय भी महत्वपूर्ण वंशवादी प्रभाव दिखाते हैं, जिनके करीब एक-चौथाई प्रतिनिधि राजनीतिक परिवारों से हैं. कुछ छोटे संगठन पूरी तरह से परिवार द्वारा संचालित हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां केवल 18 प्रतिशत पुरुष सांसद, विधायक और विधान पार्षद राजनीतिक परिवारों से आते हैं, वहीं महिलाओं के लिए यह अनुपात बढ़कर 47 प्रतिशत हो जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “विश्लेषण किए गए 4,665 पुरुष सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 856 (18 प्रतिशत) की पृष्ठभूमि वंशवादी है. 539 महिला सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 251 (47 प्रतिशत) राजनीतिक परिवारों से हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में वंशवादी प्रतिनिधित्व दोगुने से भी ज़्यादा है.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला प्रतिनिधित्व वाले लगभग सभी राज्यों में महिलाओं की वंशवादी दर पुरुषों से ज्यादा है (उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र: 69 प्रतिशत महिला बनाम 28 प्रतिशत पुरुष; आंध्र प्रदेश: 69 प्रतिशत महिला बनाम 29 प्रतिशत पुरुष; बिहार: 57 प्रतिशत महिला बनाम 22 प्रतिशत पुरुष; तेलंगाना: 64 प्रतिशत महिला बनाम 21 प्रतिशत पुरुष).
100 प्रतिशत महिला राजवंश दर वाले राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में गोवा (3 में से 3), पुडुचेरी (1 में से 1) और दादरा नगर हवेली और दमन दीव (1 में से 1) शामिल हैं.
सबसे ज्यादा वंशवादी महिलाएं उत्तर प्रदेश में हैं, जहां 69 में से 29 (42 प्रतिशत) वंशवादी हैं. वहीं महाराष्ट्र में 39 में से 27 (69 प्रतिशत); बिहार में 44 में से 25 (57 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश में 29 में से 20 (69 प्रतिशत) है.
जबकि सबसे कम वंशवादी दर पश्चिम बंगाल में है (28 प्रतिशत महिलाएं, 5 प्रतिशत पुरुष), जो संभवतः कम परिवार-केंद्रित राजनीति को दर्शाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्लेषण किए गए 94 मौजूदा निर्दलीय सांसदों, विधायकों और विधान पार्षदों में से 23 (24 प्रतिशत) की राजनीतिक पृष्ठभूमि वंशवादी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वंशवादी राजनीति केवल सीटों की विरासत तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यवस्था की एक संरचनात्मक विशेषता है. उम्मीदवारों के चयन में “जीतने की क्षमता” का प्रभुत्व, उच्च चुनावी लागत और पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र का अभाव जैसे कारक राजनीतिक परिवारों की पकड़ को मजबूत करते हैं.
पार्टियां अक्सर वंशवादी उम्मीदवारों को प्राथमिकता देती हैं क्योंकि उन्हें विरासत में धन, बाहुबल और संरक्षण का नेटवर्क मिलता है.
रिपोर्ट में पाया गया है कि मज़बूत पार्टी संगठनों वाले बड़े राज्य (जैसे तमिलनाडु, 15 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल, 9 प्रतिशत) छोटे या मध्यम आकार के राज्यों (जैसे, झारखंड, 28 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश, 27 प्रतिशत) की तुलना में कम वंशवाद दिखाते हैं.
इससे पता चलता है कि कैडर-आधारित या वैचारिक पार्टियां (डीएमके, एआईएडीएमके, वामपंथी, टीएमसी) क्षेत्रीय परिवार-संचालित संगठनों की तुलना में वंशवाद के प्रवेश को अधिक प्रभावी ढंग से कम कर सकती हैं.
झारखंड (73 प्रतिशत महिलाएं वंशवादी) और महाराष्ट्र (69 प्रतिशत) जैसे राज्यों में, राजनीति में लगभग सभी महिलाएं पारिवारिक नेटवर्क पर निर्भर करती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे पता चलता है कि वंशवाद महिलाओं के लिए दरवाजे खोलता है, लेकिन साथ ही यह पहली पीढ़ी की गैर-वंशवादी महिला राजनेताओं के लिए जगह सीमित करता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि वामपंथी और नए सुधारवादी दलों (माकपा, आप) में वंशवाद सबसे कम है, जो अभिजात्यवाद के विरुद्ध उनकी वैचारिक स्थिति के अनुरूप है.
इसके विपरीत, “सामाजिक न्याय” या जाति-आधारित क्षेत्रीय दल (सपा, राजद, जद(यू)) 30-40 प्रतिशत वंशवाद प्रदर्शित करते हैं.