शिमला: 19 जुलाई (ए)
दुल्हन सुनीता चौहान और दूल्हे प्रदीप और कपिल नेगी ने कहा कि उन्होंने बिना किसी दबाव के यह फैसला लिया है।सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी इलाके में इस विवाह की रस्में 12 जुलाई को शुरू हुई और तीन दिनों तक चली। इस दौरान स्थानीय लोकगीतों और नृत्यों की प्रस्तुति हुई। इस विवाह समारोह के वीडियो इंटरनेट पर प्रसारित हो रहे हैं।
कुन्हाट गांव की रहने वाली सुनीता ने कहा कि वह इस परंपरा से अवगत थीं और उन्होंने बिना किसी दबाव के यह निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि वह इस नये संबंध का सम्मान करती हैं।
शिलाई गांव के प्रदीप एक सरकारी विभाग में काम करते हैं जबकि उनके छोटे भाई कपिल विदेश में नौकरी करते हैं।
प्रदीप ने कहा, ‘‘हमने सार्वजनिक रूप से इस परंपरा का पालन किया, क्योंकि हमें इस पर गर्व है और यह मिलकर लिया गया एक फैसला था।’’
कपिल ने कहा कि वह भले ही विदेश में रहते हों, लेकिन इस विवाह के माध्यम से, ‘‘हम एक संयुक्त परिवार के रूप में अपनी पत्नी के लिए समर्थन, स्थिरता और प्यार सुनिश्चित कर रहे हैं’’। उन्होंने कहा, ‘‘हमने हमेशा पारदर्शिता में विश्वास किया है।’’
हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड सीमा पर बसी हट्टी जनजाति को तीन साल पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था। इस जनजाति में सदियों से बहुपति प्रथा प्रचलित थी, लेकिन महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और क्षेत्र में समुदायों के आर्थिक उत्थान के कारण, बहुपति के मामले हाल में सामने नहीं आए थे।
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि इस तरह की शादियां गुप्त तरीके से की जाती हैं और समाज द्वारा स्वीकार की जाती हैं, लेकिन ऐसे मामले कम होते हैं।
हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री वाई एस परमार ने इस परंपरा पर शोध किया और लखनऊ विश्वविद्यालय से ‘‘हिमालयी बहुपति प्रथा की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि’’ विषय पर अपनी पीएचडी पूरी की थी।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस परंपरा के पीछे मुख्य विचार यह सुनिश्चित करना था कि पैतृक भूमि का बंटवारा न हो। उन्होंने कहा कि पैतृक संपत्ति में आदिवासी महिलाओं का हिस्सा अब भी एक मुख्य मुद्दा है।