प्रयागराज (उप्र): आठ अगस्त (ए)
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा द्वारा लिखे इस पत्र में उच्चतम न्यायालय द्वारा चार अगस्त, 2025 को पारित आदेश को लेकर खेद व्यक्त किया गया है। इस पत्र पर सात न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए हैं।उच्चतम न्यायालय ने चार अगस्त को दिए अपने निर्णय में न्यायमूर्ति कुमार के न्यायिक तर्क को लेकर गंभीर टिप्पणी की थी और उच्च न्यायालय प्रशासन को उन्हें आपराधिक रोस्टर से हटाने का निर्देश दिया था। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक एक वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ एक खंडपीठ में रखने को भी कहा था।
ये निर्देश न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने ‘मेसर्स शिखर केमिकल्स’ द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया था। कंपनी ने एक वाणिज्यिक विवाद को लेकर शुरू किए गए आपराधिक मुकदमे को रद्द करने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
इससे पूर्व, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कंपनी की याचिका खारिज कर दी थी। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने कहा था कि शिकायतकर्ता को दीवानी उपाय के लिए बाध्य करना ‘‘बहुत अनुचित’’ होगा और बकाया वसूली के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने की अनुमति दी जा सकती है।
उच्चतम न्यायालय ने इस तर्क को यह कहते हुए पलट दिया, ‘‘हम इस आदेश के पैरा 12 में दिए गए तर्क को लेकर हैरान हैं… न्यायाधीश यहां तक कह गए कि शिकायतकर्ता को दीवानी मुकदमा चलाने के लिए कहना बहुत अनुचित होगा क्योंकि दीवानी मुकदमों में लंबा समय लगता है इसलिए शिकायतकर्ता को बकाया वसूली के लिए आपराधिक मुकदमा दायर करने की अनुमति दी जा सकती है।’’
उच्चतम न्यायालय ने इस दृष्टिकोण को ‘‘अस्थिर’’ पाते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार कर दिया और निर्देश दिया कि इस मामले को एक दूसरे न्यायाधीश द्वारा नए सिरे से सुना जाए।