नयी दिल्ली: चार अगस्त (ए)
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई ने शुरुआत में कहा, ‘‘मैं आप सभी से हमेशा कहता हूं कि राजनीतिक लड़ाई न्यायालय के बाहर लड़ें, यहां नहीं।’’प्रधान न्यायाधीश के साथ न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन भी पीठ में शामिल थे।
वकील ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 28 सितंबर, 2024 के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कहा कि उसने यतनाल के खिलाफ मानहानि के मामले को भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के कारण रद्द कर दिया था।
वकील ने कहा, ‘‘वह कैबिनेट स्तर के मंत्री रहे हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘तो क्या हुआ? ..25,000 रुपये के जुर्माने के साथ याचिका खारिज की जाती है।’’
न्यायालय ने बाद में जुर्माने को एक करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया।
बाद में वकील के अभ्यावेदन पर पीठ ने जुर्माना माफ कर दिया और याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
यह विवाद 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले एक रैली के दौरान यतनाल द्वारा दिए गए कथित मानहानिकारक बयानों से पैदा हुआ था।
पाटिल ने बीएनएसएस की धारा 223 के तहत आपराधिक मानहानि की कार्यवाही शुरू की थी और तर्क दिया था कि इन टिप्पणियों से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है लेकिन उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट द्वारा शिकायत का संज्ञान लेने के तरीके में प्रक्रियागत खामियों का जिक्र करते हुए यतनाल की याचिका स्वीकार कर ली थी।
उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि मजिस्ट्रेट उन बीएनएसएस प्रावधानों का ठीक से पालन करने में विफल रहे, जिनके अनुसार संज्ञान लेने से पहले मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता एवं गवाहों से पूछताछ करनी चाहिए और आरोपी को नोटिस जारी करके सुनवाई का अवसर देना चाहिए।
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मजिस्ट्रेट ने प्रक्रियात्मक चरणों का पालन नहीं किया और इसी के साथ उसने मानहानि का मामला रद्द कर दिया।