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समलैंगिक विवाह पर न्यायालय के आदेश पर ‘एलजीबीटीक्यू’ कार्यकर्ताओं ने मिली-जुली प्रतिक्रिया दी

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कोलकाता, 17 अक्टूबर (ए) समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने के उच्चतम न्यायालय के फैसले पर एलजीबीटीक्यू कार्यकर्ताओं की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। एक वर्ग ने संवैधानिक पीठ के फैसले के कुछ हिस्सों की सराहना की, जबकि दूसरे वर्ग ने असंतोष व्यक्त किया।.

पीठ की अगुवाई करने वाले प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि न्यायालय कानून नहीं बना सकता, बल्कि उनकी केवल व्याख्या कर सकता है और विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है।.पीठ ने यह भी कहा कि जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है।

एक गैर सरकारी संगठन ‘प्रांतकथा’ के संस्थापक और निदेशक बप्पादित्य मुखर्जी ने कहा, ‘‘ यह ऐतिहासिक है ! उच्चतम न्यायालय ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव नहीं किया जाए।’’

मुखर्जी ने कहा, मैं इसे न केवल एलजीबीटीक्यू समुदाय के लिए, बल्कि अविवाहित जोड़ों के लिए भी एक प्रभावी और महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखता हूं। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते यह फैसला सभी देशों में लाखों लोगों के लिए समानता का मार्ग प्रशस्त करेगा।’’

हालांकि, संस्कृत कॉलेज और विश्वविद्यालय में लैंगिक अध्ययन पढ़ाने वाली प्रोफेसर समता विश्वास इस फैसले से अंसतुष्ट दिखीं।

उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय द्वारा समलैंगिक जोड़ों को विवाह समानता से वंचित करना और इसे वर्तमान प्रतिगामी विधायिका में धकेलना निश्चित रूप से भारत में समलैंगिक आंदोलन के लिए एक झटका है।’’

पांच न्यायाधीशों की पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने यह भी कहा कि इस बारे में कानून बनाने का काम संसद का है।

विश्वास एक थिंकटैंक ‘कलकत्ता रिसर्च ग्रुप’ की सचिव भी हैं उन्होंने कहा, हालांकि, विवाह, मान्यता प्राप्त भागीदारी का एकमात्र रूप नहीं है और होना भी नहीं चाहिए, लेकिन विवाह समानता को नकारने से समाज में प्रतिगामी और रूढ़िवादी आवाजें मजबूत होती हैं।

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