नयी दिल्ली: 14 जुलाई (ए)
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने मामले को इसी सप्ताह सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई। याचिकाकर्ता तैय्यब खान सलमानी की ओर से पेश अधिवक्ता प्रदीप यादव के तत्काल सुनवाई का अनुरोध करने पर पीठ ने यह रजामंदी जतायी।यादव ने कहा कि अगर 16 जून के सरकारी आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो सैकड़ों सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे और प्राथमिक विद्यालय के हजारों छात्र स्कूल से बाहर हो जाएंगे और उन्हें पड़ोसी स्कूलों में पढ़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी, लेकिन उसने सात जुलाई को याचिकाएं खारिज कर दीं।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि यह एक नीतिगत फ़ैसला है, लेकिन अगर सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं तो वह इस मुद्दे की सुनवाई के लिए तैयार हैं।
याचिका में कहा गया है कि 16 जून को राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने एक आदेश जारी कर बेसिक शिक्षा अधिकारी की देखरेख और नियंत्रण में प्रबंधित और राज्य सरकार के स्वामित्व वाले स्कूलों का अन्य स्कूलों में विलय करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया था।
याचिका में कहा गया है, ‘‘इसके परिणामस्वरूप 24 जून, 2025 को जिन स्कूलों का विलय किया जा रहा है उनकी संख्या 105 है और उनकी सूची जारी की गई है।’’
इसमें कहा गया कि उच्च न्यायालय ने सात जुलाई को मामले के वास्तविक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किए बिना याचिकाओं को खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया है कि इस तरह का विलय आदेश राज्य में पहले से ही कमजोर शिक्षा व्यवस्था को सीधे प्रभावित करेगा और इसे नष्ट कर देगा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि नीतिगत निर्णय मनमाना, अनुचित और संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन है क्योंकि यह बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 और राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
याचिका में नियम 4(1)(ए) का हवाला दिया गया और कहा गया कि राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह कक्षा एक से पांच तक के बच्चों के लिए कम से कम 300 लोगों की आबादी वाली ऐसी बस्तियों में स्कूल स्थापित करे जहां एक किलोमीटर के दायरे में कोई स्कूल न हो।