भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत हर मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं : उच्चतम न्यायालय

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नयी दिल्ली: 23 फरवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज प्रत्येक मामले में प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है और यह आरोपी का निहित अधिकार नहीं है।

अदालत ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामलों सहित कुछ श्रेणियों के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय है, लेकिन आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए यह अनिवार्य शर्त नहीं है।न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि केवल यह पता लगाना है कि क्या उक्त सूचना से किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का पता चलता है।पीठ ने 17 फरवरी को दिए अपने फैसले में कहा, “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत हर मामले में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।”

इसमें कहा गया है, “यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी के पास स्रोत सूचना रिपोर्ट है, जो विस्तृत और तर्कपूर्ण है तथा जिसके बारे में कोई भी विवेकशील व्यक्ति यह विचार कर सकता है कि प्रथम दृष्टया यह संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है, तो प्रारंभिक जांच से बचा जा सकता है।”

शीर्ष अदालत ने कर्नाटक सरकार द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें राज्य उच्च न्यायालय के मार्च 2024 के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस थाने द्वारा एक लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए दर्ज की गई प्राथमिकी को खारिज कर दिया था। लोक सेवक पर अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप था।

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