लातूर: एक जुलाई (ए) महाराष्ट्र के लातूर जिले के 65 वर्षीय एक किसान बैल या ट्रैक्टर का खर्च वहन करने में असमर्थ होने के चलते सूखाग्रस्त क्षेत्र में अपनी सूखी जमीन जोतने के लिए पारंपरिक हल को स्वयं ही खींचने को मजबूर हैं।
सरकार और राजनीतिक नेता हालांकि खेती के आधुनिकीकरण की बातें करते हैं और साल दर साल कर्जमाफी का वादा करते हैं, लेकिन अंबादास गोविंद पवार जैसे किसानों के लिए ये आश्वासन सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।बैल या ट्रैक्टर का खर्च वहन करने में असमर्थ होने के कारण हाडौल्टी गांव के किसान अपनी जमीन जोतने के लिए स्वयं ही पारंपरिक हल को खींचते हैं। पवार के पास सिर्फ 2.5 एकड़ सूखी जमीन है। वह थका देने वाले इस कठिन काम में पिछले सात-आठ सालों से लगे हुए हैं।
सोशल मीडिया पर सामने आए एक वीडियो में पवार अपनी पत्नी के साथ सूखी जमीन पर हल खींच रहे हैं और थके हुए दिखायी दे रहे हैं।
पैंसठ वर्षीय पवार ने कहा, ‘‘मैं रुक नहीं सकता। मेरी बाहें कांपती हैं, बोझ के तले मेरे पैर जवाब देने लगते हैं, कभी-कभी गर्दन भी थक जाती है…लेकिन ज़िंदगी ने हमें कोई विकल्प नहीं दिया।’’
पवार का बेटा पुणे में छोटा-मोटा काम करता है और बेटी विवाहित है।
बैल का खर्च वहन करने या ट्रैक्टर किराये पर लेने का सामर्थ्य नहीं होने के चलते पवार खुद ही हल खींचते हैं। इस कार्य में उनकी 60 वर्षीय पत्नी मदद करती हैं। ट्रैक्टर से खेत जोतने पर रोज़ाना लगभग 2,500 रुपये का खर्च आता है।
यह दंपति शारीरिक थकावट और उम्र की सीमाओं की परवाह किए बिना इस कठिन श्रम को अंजाम दे रहा है, ताकि वह अपनी बहू और दो पोतों की मदद कर सके।