नयी दिल्ली,20 दिसंबर (ए)।दिल्ली उच्च न्यायालय ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के बढ़ते “दुरुपयोग” पर चिंता व्यक्त की और कहा कि इसके चलते सरकारी अधिकारियों में “भय और जड़ता की स्थिति” उत्पन्न हो गई है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आरटीआई कानून सरकार के कामकाज में पारदर्शिता लाने, प्रत्येक नागरिक की सूचना तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने, भ्रष्टाचार रोकने और सरकारों और उनके तंत्रों को जवाबदेह बनाने के प्रशंसनीय उद्देश्यों के साथ बनाया गया था।न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘‘हालांकि, यह अदालत अब आरटीआई अधिनियम के बढ़ते दुरुपयोग को देख रही है और यह मामला सूचना के अधिकार के दुरुपयोग का एक मामला है। आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य सुशासन को आगे बढ़ाना है और इसका दुर्भाग्यपूर्ण दुरुपयोग केवल इसके महत्व को कम करेगा और साथ ही सरकारी कर्मचारियों को अपनी गतिविधियों को करने से रोकेगा।’’न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, “यह चिकित्सकों को इसके परिणाम के भय से आपातकालीन स्थितियों में कदम उठाने से भी रोकेगा। दुर्भाग्य से इस अदालत में ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें आरटीआई के दुरुपयोग के कारण सरकारी अधिकारियों में भय और जड़ता की स्थिति पैदा हो गई।’’उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली शिशिर चंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें आयोग की रजिस्ट्री को यह निर्देश दिया गया था कि जमशेदपुर के टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल के डॉक्टर अतुल छाबड़ा की कथित चिकित्सकीय लापरवाही के चलते चंद के छोटे भाई की असामयिक मृत्यु के संबंध में उनके किसी भी अन्य मामले पर विचार न किया जाए।सीआईसी ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर आरटीआई आवेदनों की सूची और उसके द्वारा एक ही मुद्दे को बार-बार फिर से खोलने के लिए किए गए प्रयासों का हवाला दिया। उसने कहा कि मुद्दों पर पहले ही सभी पहलुओं से विचार किया जा चुका है और उन्हें पर्याप्त मात्रा में जानकारी उपलब्ध कराई गई है।उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि निस्संदेह, याचिकाकर्ता डॉक्टर की डिग्री का पता लगाने के लिए बार-बार आवेदन दायर करके आरटीआई अधिनियम का दुरुपयोग कर रहा है, यह मुद्दा इस अदालत के साथ-साथ शीर्ष अदालत के आदेशों से पहले ही निर्णायक स्थिति तक पहुंच चुका है।उच्च न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता ने वही जानकारी नहीं बल्कि अतिरिक्त जानकारी मांगी है, और इसलिए, सीआईसी को उसी विषय पर याचिकाकर्ता के किसी भी अन्य आवेदन पर विचार नहीं करने के लिए आयोग की केंद्रीय रजिस्ट्री को निर्देश नहीं देना चाहिए था। अदालत ने सीआईसी के आदेश के प्रासंगिक हिस्से को रद्द कर दिया, जिसमें रजिस्ट्री को उसी विषय पर याचिकाकर्ता के आगे के आवेदनों पर विचार नहीं करने का निर्देश दिया गया था।उच्च न्यायालय ने कहा, “अदालत याचिकाकर्ता के दर्द के प्रति सहानुभूति रखती है, हालांकि, उसे सलाह दी जाती है कि वह एक ही जानकारी को बार-बार मांगने की कोशिश करके कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग न करे, जिससे अधिनियम का उद्देश्य कमजोर हो जाए। रिट याचिका आंशिक रूप से मंजूर की जाती है।’’