नयी दिल्ली: चार मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन को उनकी ‘सनातम धर्म को मिटाने’ संबंधी टिप्पणी को लेकर अप्रसन्नता जताई और पूछा कि वह भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का दुरुपयोग करने के बाद अपनी याचिका लेकर शीर्ष अदालत के पास क्यों आए हैं।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने स्टालिन से कहा कि वह एक मंत्री हैं और उन्हें अपनी टिप्पणी के परिणाम पता होने चाहिए थे।पीठ ने कहा, ‘‘आपने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के तहत (भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंता के) अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। आपने अनुच्छेद 25 (अंतरात्मा की स्वतंत्रता एवं धर्म को अपनाने, अनुपालन और प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता) के तहत अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है तथा अब आप अनुच्छेद 32 (उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका दायर करने) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं? क्या आप अपनी टिप्पणी के नतीजे नहीं जानते थे? आप आम आदमी नहीं हैं। आप एक मंत्री हैं। आपको पता होना चाहिए था कि इस तरह की टिप्पणी का क्या परिणाम होगा।’’
न्यायालय ने मामले पर सुनवाई 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्य में सत्तारूढ़ द्रमुक के प्रमुख एम. के. स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सितंबर 2023 में एक सम्मेलन में कहा था कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय तथा समानता के खिलाफ है और उसका ‘‘उन्मूलन’’ किया जाना चाहिए। उन्होंने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया और डेंगू से करते हुए कहा था कि इसे (सनातन धर्म को) खत्म कर दिया जाना चाहिए।
वह राज्य की द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक)-नीत सरकार में युवा कल्याण एवं खेल मामलों के मंत्री हैं।
उदयनिधि स्टालिन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि वह अपने मुवक्किल की टिप्पणियों को उचित नहीं ठहरा रहे हैं, बल्कि केवल छह राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को एकसाथ जोड़ने का अनुरोध कर रहे हैं।
इसके बाद शीर्ष अदालत ने उन्हें संबंधित उच्च न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने को कहा।
पत्रकार अर्नब गोस्वामी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता नूपुर शर्मा और कुछ अन्य लोगों से जुड़े मामलों में शीर्ष अदालत के आदेशों का जिक्र करते हुए सिंघवी ने कहा कि इन सभी मामलों में शीर्ष अदालत प्राथमिकी को एक साथ जोड़ने पर सहमत हुई थी।
सिंघवी ने कहा, ‘‘मैं (मामले के) गुण-दोष पर एक शब्द भी नहीं कह रहा हूं, मैं इसे उचित नहीं ठहरा रहा हूं या आलोचना नहीं कर रहा हूं। मामले के गुण-दोष का प्राथमिकी को एक साथ जोड़ने की याचिका पर असर नहीं पड़ने दें।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह संबंधित फैसलों और कुछ मामलों की सुनवाई की प्रगति देखने के बाद 15 मार्च को इस पर सुनवाई करेगी।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 22 सितंबर को चेन्नई के वकील बी. जगन्नाथ की उस याचिका की सुनवाई पर सहमति जता दी थी जिसमें उन्होंने स्टालिन और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी थी, जिन्होंने स्टालिन की टिप्पणी एवं नफरती भाषण का समर्थन किया था।
जगन्नाथ ने अपनी याचिका में तमिलनाडु पुलिस प्रमुख को सम्मेलन के आयोजकों और मंत्रियों उदयनिधि स्टालिन, पीके शेखर बाबू सहित कथित तौर पर ‘घृणास्पद भाषण’ देने वालों के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की है।याचिकाकर्ता ने अदालत से दो सितंबर, 2023 को चेन्नई में ‘सनातन धर्म उन्मूलन’ सम्मेलन नामक कार्यक्रम में राज्य के मंत्रियों की भागीदारी को असंवैधानिक घोषित करने का भी आग्रह किया है