नयी दिल्ली: 25 जुलाई (ए)) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अदालतें आपराधिक शिकायतों में संशोधन की अनुमति दे सकती हैं बशर्ते इन बदलावों से मुकदमे में आरोपी के प्रति कोई पूर्वाग्रह ना हो।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने आगे कहा कि प्रक्रियात्मक कानून न्याय में सहायता के लिए है, न कि उसमें बाधा डालने के लिए।शीर्ष अदालत के फैसले ने इस सिद्धांत को पुष्ट किया कि प्रक्रिया संबंधी तकनीकी बातें न्याय की राह पर हावी नहीं होनी चाहिए और उसने परक्राम्य लिखत (निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट)अधिनियम की धारा 138 के तहत दायर आपराधिक शिकायत में संशोधन की अनुमति दी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब आरोप में बदलाव किया जाता है और अगर आरोपी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है, तो मुकदमा आगे बढ़ सकता है।
अदालत ने कहा, ‘‘अगर इससे पूर्वाग्रह होने की संभावना है, तो अदालत या तो नए मुकदमे का निर्देश दे सकती है या मुकदमे की सुनवाई उस अवधि के लिए स्थगित कर सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 217 अभियोजक और अभियुक्त को आरोपों में बदलाव होने पर उसमें निर्धारित शर्तों के तहत गवाहों को वापस बुलाने की स्वतंत्रता देती है।’’
अदालत ने यह टिप्पणी करना उचित समझा कि शिकायतों में संशोधन दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के लिए कोई नई बात नहीं है।