अदालत ने लालू प्रसाद, तेजस्वी के खिलाफ धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के आरोप तय किए

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 13 अक्टूबर (ए) दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को कथित आईआरसीटीसी घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी राबड़ी देवी, बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव और 11 अन्य के खिलाफ धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत आरोप तय किये।

विशेष न्यायाधीश विशाल गोगने ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले में भूमि और शेयर लेनदेन “संभवतः रांची और पुरी में रेलवे के होटलों में निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की आड़ में साठगांठ वाले पूंजीवाद का उदाहरण है।”पूर्व रेल मंत्री लालू यादव के अलावा, न्यायाधीश ने प्रदीप कुमार गोयल, राकेश सक्सेना, भूपेंद्र कुमार अग्रवाल, राकेश कुमार गोगिया और विनोद कुमार अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) के साथ धारा 13(1)(डी)(दो) और (तीन) के तहत आरोप तय किए।

धारा 13 (2) किसी लोक सेवक द्वारा आपराधिक कदाचार के लिए दंड से संबंधित है, तथा धारा 13 (1) (डी) (दो) और (तीन) किसी लोक सेवक द्वारा पक्षपात के लिए पद का दुरुपयोग करने से संबंधित है।

अदालत ने लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, तेजस्वी, मेसर्स लारा प्रोजेक्ट्स एलएलपी, विजय कोचर, विनय कोचर, सरला गुप्ता और प्रेम चंद गुप्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी) के तहत आरोप तय करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा, ‘सभी (14) आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) और आईपीसी की धारा 420 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और धारा 13(1)(डी)(दो) और (तीन) के तहत एक समान आरोप तय करने का निर्देश दिया जाता है।’

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम सज़ा 10 साल है, जबकि धोखाधड़ी के लिए सात साल।

न्यायाधीश गोगने ने कहा, ‘अदालत प्रथमदृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि जिस तरह से मेसर्स डीएमसीपीएल के शेयर राबड़ी देवी और तेजस्वी प्रसाद यादव को कम मूल्य पर हस्तांतरित किए गए, वह गंभीर संदेह पैदा करता है।’

उन्होंने कहा कि कोई भी निजी लेनदेन, जिसमें हेरफेर और भ्रामक प्रतिफल प्रतिबिंबित हो, विशेषकर जहां प्रतिफल सामान्य बाजार मानदंडों से बहुत कम हो, वह ‘बेईमानी और धोखाधड़ीपूर्ण कृत्य’ है, क्योंकि इससे सरकारी खजाने को नुकसान होता है।

उन्होंने कहा कि रांची और पुरी में रेलवे होटलों में निजी भागीदारी निजी कंपनियों द्वारा तत्कालीन मंत्री के साथ अपनी सांठगांठ बढ़ाने का एक तरीका था, जो ‘मंत्री के सहायकों’ के माध्यम से उनकी पत्नी और बेटे को पटना में प्रमुख भूखंड हस्तांतरित करके किया गया था।

उन्होंने लेन-देन को प्रथम दृष्टया ‘धोखाधड़ी’ करार देते हुए कहा, ‘षड्यंत्र बड़ा हो सकता है, लेकिन अदालत की नज़र से पूरी तरह छिपा नहीं है।’

न्यायाधीश ने कहा कि 2005 से 2014 तक हुई धोखाधड़ी के अलग-अलग पहलू कई अन्य आरोपियों के बीच हुई बड़ी साजिश से आंतरिक रूप से जुड़े हुए थे।

उन्होंने कहा, ‘इसलिए, इस स्तर पर अदालत के लिए न तो यह संभव है और न ही आवश्यक है कि वह उन बातों का खुलासा करे जिन्हें केवल साक्ष्यों के आधार पर ही अलग किया जा सकता है।’

इस मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने पांच जुलाई, 2017 को प्राथमिकी दर्ज की थी और अप्रैल 2018 में आरोप पत्र दाखिल किया गया था।