सैफ अली खान के परिवार के संपत्ति विवाद में उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: आठ अगस्त (ए)) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी, जिसमें भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की शाही संपत्ति से जुड़े दशकों पुराने संपत्ति विवाद को नए सिरे से सुनवाई के लिए निचली अदालत को वापस भेज दिया गया था।

न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर की पीठ ने नवाब हमीदुल्लाह खान के बड़े भाई के वंशजों उमर फारुक अली और राशिद अली की याचिका पर नोटिस जारी किया, जो उच्च न्यायालय के 30 जून के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें 14 फरवरी, 2000 के निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया गया था, जिसमें नवाब की बेटी साजिदा सुल्तान, उनके बेटे मंसूर अली खान (पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान) और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों, अभिनेता सैफ अली खान, सोहा अली खान, सबा सुल्तान और दिग्गज अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के संपत्ति पर विशेष अधिकारों को बरकरार रखा गया था

उच्च न्यायालय ने कहा था कि निचली अदालत का फैसला 1997 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले पर आधारित था, जिसे बाद में 2019 में उच्चतम न्यायालय ने पलट दिया था।

हालांकि, 2019 के उदाहरण को लागू करने और मामले का निर्णायक रूप से फैसला करने के बजाय, उच्च न्यायालय ने मामले को पुनर्मूल्यांकन के लिए वापस भेज दिया।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने कहा कि उच्च न्यायालय का रिमांड आदेश दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत उल्लिखित प्रक्रियात्मक मानदंडों के विपरीत है।

यह मामला 1999 में नवाब के विस्तारित परिवार के सदस्यों द्वारा दायर दीवानी मुकदमों से जुड़ा है, जिनमें दिवंगत बेगम सुरैया राशिद और उनके बच्चे, महाबानो (अब दिवंगत), नीलोफर, नादिर और यावर के साथ ही नवाब की एक और बेटी नवाबजादी कमर ताज रबिया सुल्तान शामिल हैं।

वादियों ने नवाब की निजी संपत्ति के बंटवारे, कब्जे और न्यायसंगत निपटान की मांग की थी।

निचली अदालत ने साजिदा सुल्तान के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधीन नहीं है और संवैधानिक प्रावधानों के तहत उन्हें हस्तांतरित की गई थी।

सन 1960 में नवाब की मृत्यु के बाद, भारत सरकार ने 1962 का एक प्रमाण पत्र जारी किया, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 366(22) के तहत साजिदा सुल्तान को शासक और निजी संपत्ति की वास्तविक उत्तराधिकारी दोनों के रूप में मान्यता दी गई।

हालांकि, वादी पक्ष ने तर्क दिया कि नवाब की निजी संपत्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सभी कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटी जानी चाहिए।

उन्होंने यह भी बताया कि 1962 के प्रमाण पत्र पर औपचारिक रूप से कोई विवाद नहीं था, लेकिन दावा किया कि यह न्यायसंगत विभाजन को नहीं रोकता।

अभिनेता सैफ अली खान और उनके परिवार सहित प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि उत्तराधिकार में ज्येष्ठाधिकार के नियम का पालन किया गया और साजिदा सुल्तान को शाही गद्दी और निजी संपत्ति, दोनों का वंशानुगत उत्तराधिकार प्राप्त हुआ था।

निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए, उच्च न्यायालय ने मामले को वापस भेज दिया था।याचिकाकर्ताओं ने मामले को वापस भेजने के आदेश को पलटने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया।