नयी दिल्ली: 24 नवंबर (ए)
) उच्चतम न्यायालय ने कुछ लोगों द्वारा अपने निहित स्वार्थों के लिए न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग की हालिया प्रवृत्ति की निंदा करते हुए सोमवार को कहा कि आपराधिक कानून व्यक्तिगत दुश्मनी निपटाने के लिए प्रतिशोधात्मक कार्यवाही का मंच नहीं बन सकता।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने गुवाहाटी के एक व्यवसायी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत दर्ज एक आपराधिक मामले को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।
पीठ ने कहा कि हाल के वर्षों में कुछ लोग अपने निहित स्वार्थों और अपने अप्रत्यक्ष उद्देश्यों एवं एजेंडा को पूरा करने के लिए आपराधिक न्याय तंत्र का दुरुपयोग कर रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा, ”अदालतों को ऐसी प्रवृत्तियों के प्रति सतर्क रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे समाज के ताने-बाने पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले चूक और अपराध के कृत्यों को शुरू में ही रोक दिया जाए.” शीर्ष अदालत ने शिकायत और साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए कहा कि व्यवसायी इंदर चंद बागड़ी के विरुद्ध धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का पुख्ता मामला नहीं बनाया जा सका है और शिकायतकर्ता जगदीश प्रसाद बागड़ी के पास विवादित संपत्ति के विक्रय विलेख को रद्द करने एवं अपने संविदात्मक अधिकारों के उल्लंघन के लिए हर्जाना मांगने के वास्ते दीवानी कानून के तहत अन्य उपाय मौजूद हैं.
पीठ ने कहा, ”आपराधिक कानून को व्यक्तिगत रंजिश और प्रतिशोध की भावना से प्रतिशोधात्मक कार्यवाही शुरू करने का मंच नहीं बनना चाहिए.” न्यायालय ने यह भी कहा कि इंदर चंद बागड़ी को किसी भी प्रकार की आपराधिक मंशा का दोषी नहीं ठहराया जा सकता और इसलिए, अभियोजन पक्ष द्वारा उनके विरुद्ध लगाए गए आरोप टिकने योग्य नहीं हैं. पीठ ने ”हरियाणा बनाम भजन लाल” मामले में 1992 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत का मानना है कि इंद्र चंद बागड़ी के खिलाफ आपराधिक इरादे और अन्य आरोप दुर्भावनापूर्ण इरादे से लगाए गए हैं और वर्तमान अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देना न तो समीचीन है और न ही न्याय के हित में है.