लखनऊ: सात जुलाई (ए)।) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के 50 से कम छात्रों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को नजदीकी संस्थानों के साथ विलय करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सोमवार को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की पीठ ने यह फैसला सुनाया।न्यायालय ने शुक्रवार को कृष्णा कुमारी और अन्य द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा था, जो राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील एलपी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि राज्य सरकार की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21ए का उल्लंघन करती है, जो छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है।
उनकी दलील थी कि निर्णय के कार्यान्वयन से बच्चे अपने पड़ोस में शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाएंगे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार को अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए स्कूलों के मानक को सुधारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सरकार ने आर्थिक लाभ या हानि को दरकिनार करते हुए जन कल्याण की दिशा में काम करने के बजाय इन स्कूलों को बंद करने का “आसान तरीका” चुना है।
हालांकि, अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थायी वकील शैलेंद्र सिंह और बेसिक शिक्षा निदेशक का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने तर्क दिया कि सरकार का निर्णय नियमों के अनुसार है और इसमें कोई खामी या अवैधता नहीं है।
उन्होंने कहा कि कई स्कूलों में बहुत कम या यहां तक कि कोई छात्र नहीं है और स्पष्ट किया कि सरकार ने स्कूलों को “विलय” नहीं किया है बल्कि उन्हें “जोड़ा” है और यह आश्वासन दिया कि कोई भी प्राथमिक स्कूल बंद नहीं होगा।