आर एस पुरा: पांच मई (ए)।
ए) भारत-पाक सीमा पर बढ़ते तनाव और युद्ध की आशंकाओं के बीच जम्मू के सीमावर्ती ग्रामीण तत्काल सीमा पर बने बंकरों की मरम्मत और निर्माण कार्य पूरा करने की अपील कर रहे हैं। पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 26 पर्यटकों की जान चली गई, ने 2021 के युद्धविराम समझौते द्वारा लाई गई नाजुक शांति को तहस-नहस कर दिया है। सीमावर्ती गांवों में चिंता बढ़ने के साथ ही निवासियों का कहना है कि बंकरों की “बिगड़ती स्थिति” ने उन्हें असुरक्षित बना दिया है।
पाकिस्तानी चौकियों से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर स्थित चंदू चक जैसे गांवों में – जो पहले 2020, 2018 और 2014 में गोलाबारी झेल चुके हैं – मुट्ठी भर बंकर हैं, जिनमें से कई अधूरे या अनुपयोगी हैं।
चंदू चक निवासी सुचेत सिंह ने बताया, “ज़्यादातर बंकर खंडहर हो चुके हैं। न बिजली है, न पानी, न शौचालय – कुछ में तो छत भी नहीं है।”
उन्होंने कहा, “दो साल पहले ये काम अधूरा छोड़ दिया गया था। हमें नहीं पता कि काम क्यों रुका।”
सीमा पर रहने वालों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की पहल के तहत बनाए गए कई बंकर खराब रखरखाव और निगरानी के कारण जीर्ण-शीर्ण हो गए हैं। सिंह ने कहा, “इन बंकरों ने पहले भी लोगों की जान बचाई है, लेकिन उनकी मौजूदा हालत में वे किसी की भी सुरक्षा नहीं कर सकते।”
परमजीत कौर (56) ने अपने गांव में बने एक आधे-अधूरे बंकर की ओर इशारा करते हुए पूछा, “अगर फिर से गोलाबारी शुरू हो गई तो हम अपने बच्चों और मवेशियों को कहां ले जाएंगे? हम गरीब हैं। सरकार को इस बंकर को तुरंत पूरा करना चाहिए।”
युवा निवासियों में भी यही डर है और वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से हस्तक्षेप की मांग कर रहे हैं।
छठी कक्षा के छात्र मनजूत चौधरी ने कहा, “मोदी जी को हमारे बंकर की छत ठीक करवानी चाहिए। मैंने पहले भी गोलाबारी देखी है – यह बहुत डरावना है।”
सीमा पर रहने वाले लोगों में मनोवैज्ञानिक तनाव भी स्पष्ट है क्योंकि उन्हें डर है कि युद्ध आसन्न है। एक निवासी ने कहा, “हम रात को सो नहीं पाते। हर आवाज़ हमें डरा देती है।”
एक अन्य ग्रामीण जसपॉल ने कहा, “हमने पहले भी अपने परिवार के सदस्यों को खोया है। डर हमेशा बना रहता है। खेती-किसानी भी बाधित हो गई है। हमारे खेत खाली पड़े हैं। गोलाबारी के डर से कोई भी बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पाता।”
अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास स्थित कई गांव – जिनमें जोराफार्म, महाशे-दे-कोठे, बुल्ला चक, मंगू चक, अब्दुल्लियां, कोरोटाना कलां, पिंडी, कोटली शाह दौला, पिंडी चरकन, साई और त्रेवा शामिल हैं – इसी तरह की चिंता जता रहे हैं और सरकार से बंकरों की मरम्मत में तेजी लाने का आग्रह कर रहे हैं।
अधिकारियों के अनुसार, जम्मू संभाग में अब तक 7,923 बंकर (6,964 व्यक्तिगत और 959 सामुदायिक) बनकर तैयार हो चुके हैं। निर्माण के विभिन्न चरणों में 9,905 और बंकरों पर काम अभी भी जारी है। स्वीकृत संख्या में 13,029 व्यक्तिगत और 1,431 सामुदायिक बंकर शामिल हैं, जिन्हें क्रमशः आठ और चालीस लोगों को आश्रय देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
अरनिया जैसे कुछ इलाकों में लोगों ने खुद ही तैयारियां कर ली हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) से पांच किलोमीटर दूर स्थित, 18,500 से अधिक की आबादी वाला अरनिया शहर 2020 और 2018 में एक भूतहा शहर जैसा लग रहा था, जहां भारी गोलाबारी के बाद जानवरों की देखभाल और घरों की रखवाली के लिए आस-पास की बस्तियों में केवल कुछ लोग और कुछ पुलिसकर्मी ही बचे थे।
स्थानीय निवासी सुनील चौधरी ने बताया, “हमारे यहां 50 व्यक्तिगत और सात सामुदायिक बंकर हैं। बिजली बहाल कर दी गई है और राशन का स्टॉक रखा गया है।” उन्होंने कहा, “हम किसी भी स्थिति के लिए तैयार हैं।”
लेकिन भय के साथ-साथ क्रोध भी पनप रहा है।
चौधरी ने कहा, “पहलगाम हमला एक नरसंहार था। पाकिस्तान को इसकी कीमत चुकानी होगी। हम मोदी सरकार से कड़ी प्रतिक्रिया चाहते हैं – बस बहुत हो गया।”
एक अन्य निवासी बलबीर ने भी यही भावना दोहराई। उन्होंने कहा, “हमने अपनी फसलें जल्दी काट ली हैं। हमारे बंकर तैयार हैं। लेकिन अब हम सिर्फ़ सुरक्षा नहीं, बल्कि कार्रवाई चाहते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि भारत को पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए ताकि वह फिर से ऐसी हरकतें करने की हिम्मत न कर सके।
जैसे-जैसे सीमा पर तनाव बढ़ रहा है, लगातार खतरे के बीच रह रहे ये सीमावर्ती ग्रामीण सुरक्षा और पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई दोनों की मांग कर रहे हैं।
भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव बढ़ रहा है. इस तनाव के बीच जम्मू में सीमावर्ती इलाकों में रह रहे लोग अपने बचाव के तरीके भी अपना रहे हैं. चाहे वह भारत-पाकिस्तान सीमा पर बंकरों की सफाई हो या फिर सीमा पर लगे खेतों में फसल काटना. अब जम्मू में सीमावर्ती इलाकों में स्कूली बच्चों को फायरिंग से बचने के तरीके सिखाए जा रहे हैं.जम्मू के सीमावर्ती इलाके अरनिया के आखिरी गांव त्रैवा में इन दोनों स्कूली बच्चों को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है. यह ट्रेनिंग उन्हें पाकिस्तान की तरफ से हुई अचानक गोलाबारी से बचने के लिए दी जा रही है. स्कूली बच्चों को शिक्षक यह सीख रहे हैं कि अगर पाकिस्तान अचानक किसी हिमाकत पर उतर आता है और उसे समय वह स्कूल में है तो अपनी जान कैसे बचाया जाए.
स्कूल प्रशासन इस बाबत एक मॉक ड्रिल भी करवा रहा है ताकि स्कूली बच्चों को अपनी जान बचाने के तरीके आसानी से समझाया जा सके. इन स्कूली बच्चों को फायरिंग के वक्त अपनी जान बचाने के लिए स्कूल में लगे डेस्क के नीचे छिपने की ट्रेनिंग दी जा रही है और अगर गोलीबारी ज्यादा होती है तो स्कूल में ही बन बंकर में छिपकर यह बच्चे जान कैसे बचा सकते हैं उसकी भी ट्रेनिंग दी जा रही है.