नयी दिल्ली: 31 जुलाई (ए)) उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों को निर्देश दिया है कि वे किसी आरोपी या उसके परिवार के सदस्यों की ओर से निर्धारित रकम जमा करने के लिए दिए गए शपथपत्र के आधार पर जमानत आदेश पारित न करें।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस प्रथा को रोकना होगा।न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि वादी “अदालतों को गुमराह कर रहे हैं” और उच्च न्यायालय तथा निचली अदालतें नियमित या अग्रिम जमानत के अनुरोध वाली याचिका पर मामले के गुण-दोष के आधार पर फैसला लेंगी।
पीठ ने कहा, “इस आदेश के जरिये हम यह स्पष्ट करते हैं और वह भी निर्देशों के रूप में कि अब से कोई भी निचली अदालत या उच्च न्यायालय किसी भी ऐसे शपथपत्र पर नियमित जमानत या अग्रिम जमानत देने का आदेश पारित नहीं करेगा, जिसे आरोपी उचित राहत पाने के मकसद से पेश करने के लिए तैयार हो।”
शीर्ष अदालत ने 28 जुलाई को बंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। उच्च न्यायालय ने धोखाधड़ी के एक मामले में जमानत पर रिहा आरोपी को चार हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
आरोपी को जमानत तब दी गई थी, जब उसने उच्च न्यायालय में एक शपथपत्र दायर कर कहा था कि वह 25 लाख रुपये जमा करने को तैयार है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी ने जमानत पर रिहाई तो हासिल कर ली, लेकिन वह उच्च न्यायालय के समक्ष दायर शपथपत्र में दिए गए आश्वासन के अनुसार तय राशि जमा कराने में विफल रहा।