नयी दिल्ली: 12 अगस्त (ए)) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को खुद को देश के सभी नागरिकों का ‘‘संरक्षक’’ बताया और मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते समय जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के संबंध में स्वत: संज्ञान मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘हम देश के सभी नागरिकों के संरक्षक हैं।’’पीठ ने मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
किसी वकील के किसी अपराध में शामिल होने के मुद्दे पर पीठ ने कहा कि उसने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ या उन्हें गढ़ने के संबंध में सलाह देने की उनकी सामान्य कार्यप्रणाली से कोई भी विचलन उनकी प्रतिरक्षा को समाप्त कर देगा।
मेहता ने कहा कि जांच एजेंसियों को कभी भी किसी वकील को पेशेवर राय देने के मुद्दे पर नहीं बुलाना चाहिए।
मामले में पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि मुद्दा न्याय तक पहुंच का है।
उन्होंने कहा कि हाल ही में एक वकील के खिलाफ इस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई कि उनके मुवक्किल ने कहा था कि उसने उन्हें नोटरीकृत हलफनामा देने के लिए अधिकृत नहीं किया था।
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि वह वकीलों के दो वर्ग नहीं बना सकती।
मेहता ने उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि वह सभी के लिए कानून बनाए, लेकिन देश के परिदृश्य को भी ध्यान में रखे।
पीठ ने आदेश सुरक्षित रख लिया।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पूर्व में कहा था कि उन्होंने इस मामले में विभिन्न बार निकायों द्वारा दायर प्रस्तुतियों का अध्ययन किया है और एक लिखित नोट दाखिल करेंगे।
पीठ ने वकीलों से एक सप्ताह के भीतर अपने नोट दाखिल करने को कहा।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ‘‘सभी सीमाएं पार कर रहा है’’। इसने जांच के दौरान कानूनी सलाह देने या मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने को लेकर एजेंसी द्वारा वकीलों को तलब किएए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी।
यह स्वतः संज्ञान मामला ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद सामने आया।
बीस जून को ईडी ने कहा था कि उसने अपने जांच अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे धनशोधन जांच का सामना कर रहे लोगों के किसी भी वकील को समन जारी न करें। इसने कहा था कि इस संबंध में अपवाद केवल एजेंसी के निदेशक की ‘‘अनुमति’’ के बाद ही किया जा सकता है।
बार निकायों ने प्रधान न्यायाधीश से मामले का स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया था।