नयी दिल्ली: 18 अगस्त (ए)) उच्चतम न्यायालय ने आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद संजय सिंह की उस याचिका की सुनवाई से सोमवार को इनकार कर दिया, जिसमें कम दाखिला वाले 100 से अधिक प्राथमिक विद्यालयों के विलय को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सिंह को याचिका वापस लेने और अपनी शिकायत इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर करने की अनुमति दे दी।
सुनवाई के दौरान संजय सिंह की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यूपी सरकार की ओर से स्कूलों के मर्जर की प्रक्रिया से करीब 27 हजार परिषदीय स्कूल प्रभावित होंगे। सिब्बल ने कहा कि यूपी सरकार का फैसला शिक्षा के अधिकार कानून का खुला उल्लंघन है। इसकी वजह से करीब एक लाख 35 हजार सहायक शिक्षकों और करीब 27 हजार प्रधानाध्यापक के पद समाप्त हो जाएंगे।
इससे शिक्षामित्रों और रसोइयों की नौकरियां भी खतरे में पड़ जाएंगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मसले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय सुनवाई कर रहा है। ऐसे में ये मसला उच्च न्यायालय में उठाया जाना चाहिए। तब सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालय को दिशा-निर्देश जारी किए जाएं कि मामले का निपटारा जल्द हो। तब न्यायालय ने कहा कि हजारों छात्रों के भविष्य का सवाल है, इसलिए उच्च न्यायालय इस मामले पर प्राथमिकता के साथ सुनवाई करे।
याचिका में यूपी सरकार के 16 जून के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कम संख्या वाले 100 से ज्यादा प्राइमरी स्कूलों को दूसरे स्कूलों में विलय करने को कहा गया है। याचिका में कहा गया था कि अगर यूपी सरकार के इस आदेश पर रोक नहीं लगी, तो 105 प्राथमिक स्कूल बंद हो जाएंगे। इसकी वजह से हजारों बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे और उन्हें दूर के स्कूलों में पढ़ने के लिए जाना पड़ेगा।