नयी दिल्ली: 14 अगस्त (ए)) उच्चतम न्यायालय ने प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षाओं में विधि स्नातकों के शामिल होने के लिए न्यूनतम तीन वर्ष वकालत का मानदंड तय करने संबंधी अपने फैसले में संशोधन करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया और कहा कि इससे ‘‘भानुमती का पिटारा’’ खुल जाएगा।
उच्चतम न्यायालय मध्य प्रदेश के एक न्यायाधीश की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने अपने अनुभव को ध्यान में रखते हुए मौजूदा न्यायिक अधिकारियों को भी यह परीक्षा देने की अनुमति देने के लिए पहले के फैसले में बदलाव की मांग की थी।