नयी दिल्ली: तीन नवंबर (ए)
) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों सहित उन संस्थानों में आवारा कुत्तों के खतरे के संबंध में सात नवंबर को निर्देश जारी करेगा, जहां कर्मचारी कुत्तों को सहायता, भोजन और उन्हें प्रश्रय देते हैं जिससे वे उस जगह को छोड़कर नहीं जाते।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने इस मामले में सुनवाई की।
न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, ‘‘उपस्थिति और हलफनामे आदि दर्ज करने के अलावा हम उन सरकारी संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों और अन्य संस्थानों में संस्थागत खतरों के संबंध में भी कुछ निर्देश जारी करेंगे जहां कर्मचारी कुत्तों को सहायता, भोजन उपलब्ध कराते हैं और उन्हें प्रश्रय देते हैं। इसके लिए हम निश्चित रूप से कुछ निर्देश जारी करेंगे।’’
मामले में पेश हुए एक वकील ने पीठ से आग्रह किया कि इस मुद्दे पर निर्देश देने से पहले उनकी बात भी सुनी जाए। इस पर न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, ‘‘माफ करिए हम संस्थागत मामलों में कोई दलील नहीं सुनेंगे।’’
पीठ ने इस बात का संज्ञान लिया कि अधिकतर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव उसके समक्ष उपस्थित थे।
न्यायालय ने केरल के मुख्य सचिव द्वारा दायर छूट के अनुरोध वाले आवेदन को अनुमति दे दी और इस बात को संज्ञान में लिया कि प्रधान सचिव अदालत में उपस्थित हैं।
पीठ ने कहा कि भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड को इस मामले में पक्षकार बनाया जाए।
सुनवाई शुरू होने पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि अधिकतर राज्यों ने इस मामले में अपने अनुपालन हलफनामे दाखिल कर दिए हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘फैसले के लिए सात नवंबर की तारीख सूचीबद्ध की जाए।’’
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों की प्रत्यक्ष उपस्थिति अब जरूरी नहीं है।
हालांकि पीठ ने कहा कि आदेशों के अनुपालन में चूक होने पर मुख्य सचिवों की उपस्थिति फिर से आवश्यक हो जाएगी।
शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करते हुए पश्चिम बंगाल और तेलंगाना को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तीन नवंबर को उसके समक्ष उपस्थित होकर यह बताने का निर्देश दिया था कि अदालत के 22 अगस्त के आदेश के बावजूद अनुपालन हलफनामे क्यों नहीं दायर किए गए।
शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियमों के अनुपालन के लिए उठाए जा रहे कदमों के बारे में पूछा था।
पीठ ने अपने आदेश का पालन नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की थी और कहा था कि 27 अक्टूबर तक पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को छोड़कर किसी भी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ने अनुपालन हलफनामे दायर नहीं किए थे।
न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि मुख्य सचिवों को न्यायालय में उपस्थित होकर यह बताना होगा कि उन्होंने अनुपालन हलफनामा क्यों नहीं दाखिल किया।
शीर्ष अदालत ने 27 अक्टूबर को इस मामले में अनुपालन हलफनामा दाखिल नहीं करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को फटकार लगाई थी और कहा था कि लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं और विदेशों में देश का ‘‘मान’’ कम हो रहा है।
इससे पहले शीर्ष अदालत ने आवारा कुत्तों के मामले का दायरा दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की सीमाओं से आगे बढ़ाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया था।
इसने नगर निगम अधिकारियों को एबीसी नियमों के अनुपालन के लिए कुत्तों के वास्ते उपलब्ध बाड़े, पशु चिकित्सकों, कुत्तों को पकड़ने वाले कर्मियों और विशेष रूप से परिवर्तित वाहनों एवं पिंजरों जैसे संसाधनों के पूर्ण आंकड़ों के साथ अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था।
पीठ ने इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भी पक्षकार बनाया था और कहा था कि एबीसी नियमों का पालन पूरे भारत में एक समान तरीके से हो।
उच्चतम न्यायालय 28 जुलाई को एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई कर रहा है, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में आवारा कुत्तों के काटने से विशेषकर बच्चों में रेबीज फैलने की बात कही गई थी।