नैनीताल: 26 जुलाई (ए)) एक अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (एडीएम) द्वारा जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हिंदी में जवाब देने पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के दो शीर्ष अधिकारियों से यह पता लगाने को कहा है कि क्या एक अधिकारी जिसे अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है, वह किसी कार्यकारी पद पर प्रभावी ढंग से काम कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक माहरा की खंडपीठ ने जब पूछा कि उन्होंने अंग्रेजी के बजाय हिंदी क्यों चुनी, तो अधिकारी ने कहा कि वह (अंग्रेजी) भाषा समझ तो सकते हैं, लेकिन धाराप्रवाह बोल नहीं सकते।
इस पर मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे इस बात की जांच करें कि क्या एक ऐसा अधिकारी, जो खुद यह स्वीकार करता है कि उसे अंग्रेजी बोलनी नहीं आती, एक कार्यकारी पद को प्रभावी रूप से संभालने की स्थिति में है? हाईकोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को निर्धारित की है.
कोर्ट ने यह बात मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान कही. इस दौरान नैनीताल के एडीएम मौजूद थे. याचिका में यह सवाल उठाया गया था कि क्या सिर्फ परिवार रजिस्टर को ही आधार बनाकर लोगों के नाम वोटर लिस्ट में शामिल करना वैध है? SEC की ओर से अदालत को बताया गया कि बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर जानकारी इकट्ठा करते हैं. वे किसी एक प्रतिनिधि से पूरे परिवार के नाम लेकर, बिना किसी सहायक दस्तावेज या पहचान प्रमाण के, अस्थायी मतदाता सूची में दर्ज करते हैं. यदि इन प्रविष्टियों पर कोई आपत्ति नहीं आती, तो उन्हें अंतिम सूची में जोड़ दिया जाता है