इरडा के निर्देशों का खुला उलंघन करने वाली बीमा कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही हो-विकास उपाध्याय

छत्तीसगढ़ रायपुर
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रायपुर,24 सितम्बर एएनएस । संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने आरोप लगाया कि इंश्योरेंस कंपनियों द्वारा कोरोना संक्रमण से पीड़ित मरीजों को जरूरत के वक्त मेडिक्लेम न देकर कई बीमा कंपनियां बीमा नियामक कंपनी इरडा के निर्देशों का खुला उलंघन कर रही है। उन्होंने केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र भेज कर ऐसे बीमा कंपनियों पर कार्यवाही करने का आग्रह किया है। विकास उपाध्याय ने बताया बीमा नियामक कंपनी इरडा ने सभी बीमा कंपनियों को इस बाबत निर्देश दिया है कि वे मेडिक्लेम में कोरोना महामारी को भी शामिल करें। इसके बाद सभी कंपनियों ने हेल्थ इंश्योरेंस में इसे शामिल किया है,पर इसका फायदा मिल नहीं रहा है। विकास ने कहा लॉकडाउन के बाद ऐसे बीमा कंपनियों के दफ्तरों में तालाबंदी की जाएगी।

विकास उपाध्याय ने जारी बयान में कहा अगर कोरोना मरीज प्राइवेट अस्पताल में भर्ती होता है तो उसकी इंश्योरेंस पॉलिसी को देखते हुए उसके कैशलेस इलाज का खर्च बीमा कंपनी उठाएगी। लेकिन उसे उतना ही पैसा मिलेगा, जितना उसकी इंश्योरेंस पॉलिसी के अनुसार तय होगा। बावजूद बीमा कंपनियां जरूरत के वक्त पीड़ितों के साथ धोखा कर सही वक्त में पैसा न दे कर पीड़ितों को परेशानी में डाल दी हैं। बीमा कंपनियों द्वारा पीड़ितों को ये कहा जा रहा है कि आप अभी खुद इसका भुगतान कर दो बाद में कंपनी से मिल जाएगा। विकास उपाध्याय ने कहा बीमा इसलिए किया जाता है कि पीड़ित को किसी तरह का नगद अधिभार न पड़े। लेकिन आर्थिक स्थिति से गुजर रहे पीड़ितों के साथ ऐसा कर बीमा कंपनियां धोखा कर रही हैं।

विकास उपाध्याय ने ऐसे बीमा कंपनियों के खिलाफ शख्स कार्यवाही करने केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र भेज कर कहा है कि बीमा कंपनियां कोरोना काल में संक्रमित पीड़ितों के साथ धोखा कर रहे हैं। इस हेतु स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किया जाए।उन्होंने कहा बीमा के शर्तों में जो नियम व दिशा निर्देश है, उसमें बीमा धारक को हेल्थ इंश्योरेंस का फायदा उठाने के लिए अस्पताल में कम से कम 24 घंटे भर्ती होना जरूरी है और ऐसे अधिकांश मरीज हैं जो 3-5 दिन तक अस्पताल में भर्ती हैं। जिनका लाखों का बिल बन रहा है पर बीमा कंपनी क्लेम नहीं दे रही है। विकास ने कहा ऐसे भी एक ही परिवार के शख्स हैं जो कोरोना पॉजिटिव पाये जा रहे हैं लेकिन अस्पताल में भर्ती होने के बजाय घर पर इलाज करवा रहे है, जो ईमानदारी से हेल्थ इंश्योरेंस के नियमों का पालन कर कोई क्लेम भी नहीं कर रहे हैं,पर जो सदस्य इसका हकदार है, उसे भी इससे बाहर किया जा रहा है।

विकास उपाध्याय ने कहा पीड़ित के सबसे ज्यादा खर्चे नॉन-मेडिकल चीजों के होते हैं। ऐसी करीब 200 चीजें हैं जो हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल नहीं हैं। इसका पैसा मरीज को देना पड़ता है। इनमें कंघा, बेबी फूड, फुट कवर, टूथपेस्ट, टूथ ब्रश, टीवी चार्ज, इंटरनेट चार्ज आदि शामिल हैं। कोरोना के इलाज के दौरान बिल में पीपीई किट, ग्लव्स, मास्क, चादर, कंबल आदि भी नॉन-मेडिकल चीजों में शामिल होते हैं और इसका खर्च मरीज को खुद उठाना पड़ता है। ऐसे में बीमा कंपनियां उनके हक के पैसे को भी समय पर नहीं देगी तो मरीज के परिजन क्या करेंगे। उन्होंने कहा हाल में इरडा ने एक बयान जारी कर हेल्थ इंश्योरेंस जारी करने वाली कंपनियों से कहा है कि वे पीपीई किट के खर्चे को भी हेल्थ इंश्योरेंस में शामिल करें। परन्तु बीमा कंपनियां ऐसा नहीं कर नियमों का खुला उलंघन कर रही हैं।