नयी दिल्ली: पांच अगस्त (ए)) अनुभवी नेता सत्यपाल मलिक का पांच दशक लंबा राजनीतिक करियर कई राजनीतिक दलों से गुजरा और वह इस दौरान कई उच्च-स्तरीय संवैधानिक पदों पर भी रहे जिसके बाद वह उसी सत्ता प्रतिष्ठान के मुखर आलोचक बन गए जिसकी उन्होंने सेवा की थी।उन्होंने चार राज्यों – बिहार (2017), जम्मू और कश्मीर (2018), गोवा (2019) और मेघालय (2020) के राज्यपाल के रूप में कार्य किया। लेकिन उनका सबसे प्रभावशाली कार्यकाल अगस्त 2018 में शुरू हुआ, जब उन्हें जम्मू और कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
इस कार्यकाल में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं । पहला, 2019 का पुलवामा आतंकवादी हमला जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए तथा दूसरा, पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बना दिया गया तथा तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों–जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया। मलिक जम्मू-कश्मीर राज्य के अंतिम राज्यपाल थे।
मलिक (79) कुछ समय से यहां एक अस्पताल में भर्ती थे और मंगलवार को उनका निधन हो गया। वर्ष 2019 में आज के ही दिन अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाया गया था।
यद्यपि वह भाजपा में एक वफादार के रूप में प्रमुखता से उभरे, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी पहचान केंद्र सरकार की नीतियों के मुखर आलोचक के रूप में होने लगी थी, जिससे उनकी सार्वजनिक छवि एक अनुभवी प्रशासक से एक मुखर असंतुष्ट की बन गई थी।
जम्मू-कश्मीर से उन्हें गोवा स्थानांतरित कर दिया गया था, जहां राज्य सरकार के साथ उनके रिश्ते खराब हो गए क्योंकि उन्होंने कोविड-19 से निपटने के उनके प्रयासों की खुलेआम आलोचना की और उस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। गोवा से उन्हें मेघालय भेज दिया गया जो बतौर राज्यपाल उनका अंतिम कार्यभार था।
राज्यपाल पद से सेवानिवृत्त होने पर, उन्होंने महत्वपूर्ण मामलों पर सार्वजनिक रूप से केंद्र सरकार की आलोचना की। उन्होंने यह भी कहा था कि पुलवामा हमला सरकारी उदासीनता का परिणाम था।
उन्होंने तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध का मुखर समर्थन किया। उनका तर्क था कि केंद्र सरकार ने उनकी (किसानों की) बात नहीं सुनी।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में, मलिक का नाम इस साल मई में दाखिल किये गये सीबीआई के आरोपपत्रों में भी शामिल था, जो 2,200 करोड़ रुपये की कीरू जलविद्युत परियोजना में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में थे। उन्होंने अस्पताल के बिस्तर से ही इन आरोपों का पुरजोर खंडन किया और इसे ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ बताया था।
मलिक का जन्म 24 जुलाई, 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में हुआ था।
उनकी राजनीतिक यात्रा समाजवादी विचारधारा वाले एक छात्र नेता के रूप में शुरू हुई, लेकिन बाद में उनका राजनीतिक जीवन कई दलों में बदलता रहा। वह भारतीय क्रांति दल (बीकेडी) से कांग्रेस में चले गये, फिर जनता दल और अंततः भाजपा में शामिल हो गए।
जाट नेता मलिक पहली बार 1974 में चरण सिंह की बीकेडी से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए थे।
मलिक दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए – 1980 से 1986 तक और फिर 1986 से 1989 तक । फिर उन्होंने जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। वह अलीगढ़ संसदीय सीट से जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे।
तत्कालीन वी पी सिंह सरकार ने उन्हें संसदीय कार्य और पर्यटन राज्य मंत्री नियुक्त किया।
वी पी सिंह सरकार के गिर जाने और उसके बाद जनता दल में उथल-पुथल होने के बाद, मलिक भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा में वह पार्टी उपाध्यक्ष बने और किसान मोर्चा (किसान प्रकोष्ठ) के प्रभारी के रूप में भी कार्य किया।