नयी दिल्ली, 25 अप्रैल (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि पुलिस बूथ एक सार्वजनिक आवश्यकता हैं। इसी के साथ अदालत ने ऐसे बूथ पर फुटपाथ का अतिक्रमण करने और पैदल यात्रियों का रास्ता बाधित करने का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
जन सेवा वेलफेयर सोसायटी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “यह एक सार्वजनिक आवश्यकता है। उन्हें बूथ चाहिए…। आप सिद्धांत के तौर पर यह नहीं कह सकते कि पुलिस बूथ नहीं हो सकता। वे इसे कहां स्थापित करेंगे? पेड़ पर या फिर किसी और चीज पर?”
पीठ में न्यायमूर्ति नवीन चावला भी शामिल थे। उसने याचिकाकर्ता को किसी पुलिस बूथ के सार्वजनिक मार्ग को बाधित करने की सूरत में अधिकारियों से इसकी शिकायत करने को कहा।
अदालत ने स्पष्ट किया, “अगर आपको लगता है कि कोई विशेष बूथ परेशानी का सबब बन रहा है तो आप उसकी शिकायत कर सकते हैं।”
पीठ ने कहा कि अधिकारी चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता द्वारा की गई किसी भी शिकायत पर विचार करेंगे और यदि इसे सही पाया जाता है तो वे उचित कार्रवाई करेंगे।
दिल्ली पुलिस के वकील ने उच्च न्यायालय को सूचित किया कि पुलिस बूथ/कियोस्क की स्थापना को विनियमित करने के मुद्दे पर अदालत पहले ही विचार कर चुकी है और इसके आधार पर अधिकारियों को एक आदेश भी जारी किया गया था।
अदालत को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता ने इसी तरह की राहत की मांग करने वाली एक याचिका को बिना शर्त वापस ले लिया था, ऐसे में उसी मुद्दे को दोबारा नहीं उठाया जा सकता है।
उस याचिका में याचिकाकर्ता ने अवैध रूप से निर्मित पुलिस बूथों को हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।