इंदौर: आठ जुलाई (ए)) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर में ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन वर्षीय लड़की को ‘संथारा’ व्रत ग्रहण कराए जाने के बाद उसकी मौत के सिलसिले में दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को उसके माता-पिता और सरकार से जवाब मांगा।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रुसिया और न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी ने इस याचिका पर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के साथ ही ‘संथारा’ व्रत ग्रहण कराए जाने के बाद दम तोड़ने वाली तीन वर्षीय लड़की के माता-पिता को नोटिस जारी किया।युगल पीठ ने प्रतिवादियों से चार हफ्तों के भीतर नोटिस का जवाब तलब किया है। जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 25 अगस्त को हो सकती है।
यह याचिका शहर के सामाजिक कार्यकर्ता प्रांशु जैन (23) ने दायर की है। याचिका में गुहार की गई है कि नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों को ‘संथारा’ व्रत ग्रहण कराए जाने की प्रक्रिया पर कानूनी रोक लगाई जाए क्योंकि इस प्रक्रिया के कारण संबंधित व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन होता है।
‘संथारा’ जैन धर्म की प्राचीन प्रथा है जिसका पालन करने वाला व्यक्ति स्वेच्छा से अन्न-जल, दवाएं और अन्य सांसारिक वस्तुएं छोड़कर प्राण त्यागने का फैसला करता है।
जैन के वकील शुभम शर्मा ने ‘ बताया कि जनहित याचिका में कहा गया है कि ‘संथारा’ की प्रक्रिया शुरू किए जाने से पहले यह व्रत लेने वाले व्यक्ति की सहमति की आवश्यकता होती है, लेकिन ब्रेन ट्यूमर से जूझ रही तीन साल की अबोध बच्ची को कथित तौर पर जबरन यह व्रत दिला दिया गया जिससे उसकी मौत हो गई।
उन्होंने बताया, ‘बच्ची की मौत के बाद उसके माता-पिता के आवेदन पर गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने बच्ची के नाम विश्व कीर्तिमान का उत्कृष्टता प्रमाण पत्र जारी किया। इस प्रमाण पत्र में बच्ची को जैन विधि-विधान के मुताबिक संथारा व्रत ग्रहण करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की शख्स बताया गया है।’
शर्मा ने यह भी बताया कि ‘संथारा’ व्रत दिलाए जाने के बाद तीन वर्षीय लड़की की मौत का मामला मीडिया के जरिये सामने आने के बाद उनके मुवक्किल ने केंद्र और राज्य सरकार को इसके खिलाफ शिकायत की थी, लेकिन इस पर कोई भी कदम नहीं उठाए जाने के कारण उन्होंने आखिरकार अदालत का दरवाजा खटखटाया।
संथारा’ व्रत दिलाए जाने के बाद प्राण त्यागने वाली लड़की के माता-पिता सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के पेशेवर हैं। लड़की की मौत पर बवाल मचने के बाद उसके माता-पिता ने दावा किया था कि उन्होंने 21 मार्च की रात एक जैन मुनि की प्रेरणा से अपनी इकलौती संतान को यह व्रत दिलाने का फैसला ऐसे वक्त लिया, जब वह ब्रेन ट्यूमर के कारण बेहद बीमार थी और उसे खाने-पीने में भी दिक्कत हो रही थी।
लड़की के माता-पिता के मुताबिक जैन मुनि द्वारा ‘संथारा’ के धार्मिक विधि-विधान पूरे कराए जाने के चंद मिनटों के भीतर ही उनकी बेटी ने प्राण त्याग दिए थे।
जैन समुदाय की धार्मिक शब्दावली में संथारा को ‘सल्लेखना’ और ‘समाधि मरण’ भी कहा जाता है। इस प्राचीन प्रथा के तहत कोई व्यक्ति अपने अंतिम समय का आभास होने पर मृत्यु का वरण करने के लिए अन्न-जल और सांसारिक वस्तुएं त्याग देता है।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में ‘संथारा’ प्रथा को भारतीय दंड विधान की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था। हालांकि, जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक निकायों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राजस्थान उच्च न्यायालय के इस आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी।