नयी दिल्ली: 17 जून (ए)।) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शादी का वादा कर एक महिला से बलात्कार करने के आरोपी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक डॉक्टर को जमानत दे दी और कहा कि प्रथमदृष्टया पता चलता है कि आरोपी और महिला ‘‘सहमति से सहजीवन साथी’’ थे।
जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहीं न्यायमूर्ति शैलेंद्र कौर ने कहा कि महिला ने अन्य लोगों के खिलाफ भी इसी तरह के अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज कराई थी तथा जबरन वसूली सहित कुछ मामले भी उसके खिलाफ दर्ज किए गए।
न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि महिला ने अन्य लोगों के खिलाफ भी इसी तरह के आरोपों में कई एफआईआर दर्ज कराई हैं और उसके खिलाफ भी कुछ मामलों, जैसे कि जबरन वसूली (एक्सटॉर्शन), में केस दर्ज हैं।
कोर्ट ने कहा, “महत्वपूर्ण यह है कि याचिकाकर्ता के वकील ने बताया है कि पीड़िता ने अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी इसी तरह के अपराधों की एफआईआर दर्ज कराई है और उसके खिलाफ भी कुछ एफआईआर दर्ज हैं।”
महिला पर जबरन वसूली का मामला भी दर्ज है, जिसमें उस पर एक व्यक्ति और उसके परिवार से पैसे वसूलने के लिए आपराधिक आरोप लगाने की धमकी देने का आरोप है।
कोर्ट ने 30 मई के आदेश में कहा, “कोर्ट के समक्ष रखे गए साक्ष्य से स्पष्ट है कि इस मामले में दोनों पक्षों के संबंधों की प्रकृति को लेकर विरोधाभासी बातें हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक तौला जाना चाहिए।”
39 वर्षीय महिला शिक्षित, पूर्व में विवाहित और एक विशेष आवश्यकता वाले बच्चे की मां है। वह डॉक्टर और उसके परिवार के साथ 15 दिन तक रही थी।
कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि दिसंबर 2024 की शुरुआत में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के बावजूद, पीड़िता ने पुलिस को कोई शिकायत नहीं दी और इसके लिए कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया। वास्तव में, वह उसके साथ रहना जारी रखी।”
यह भी सामने आया कि महिला ने डॉक्टर के परिवार को कथित यौन उत्पीड़न की जानकारी नहीं दी थी।
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि डॉक्टर ने शादी का झूठा वादा किया, लेकिन डॉक्टर के वकील ने इसे सहमति से बनी लिव-इन रिलेशनशिप बताया और कहा कि शादी का कोई वादा नहीं किया गया था।
कोर्ट ने कहा, “यह मानना उचित है कि पीड़िता, एक परिपक्व, शिक्षित और विवाहित महिला होने के नाते, विवाह की प्रक्रिया को समझती होगी। हालांकि, ये आरोप ट्रायल का विषय होंगे।”
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से कोर्ट ने प्रारंभिक तौर पर माना कि डॉक्टर और शिकायतकर्ता “एक सक्रिय और सहमति से बनी लिव-इन रिलेशनशिप” में थे।