बॉम्बे हाईकोर्ट की जज ने कहा दुष्कर्म पीड़िताओं की गवाही भरोसे लायक नहीं, आरोपी को किया बरी

राष्ट्रीय
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मुंबई, 30 जनवरी (ए)। बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने हाल ही में नाबालिग लड़कियों से दुष्कर्म के आरोपी दो व्यक्तियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि पीड़ितों की गवाही आरोपियों के खिलाफ आपराधिक आरोप तय करने के लिए भरोसे लायक नहीं है।
इससे पहले उन्होंने अपने दो फैसलों में कहा था कि कपड़ों के ऊपर से संवेदनशील अंग को छूना और नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना, पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत ‘यौन हमले’ के दायरे में नहीं आता है। ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क की उनके तर्क पर सुप्रीम कोर्ट समेत कई कानूनी विशेषज्ञों ने भी एतराज जताया था। अपने फैसलों को लेकर जस्टिस पुष्पा पहले से ही आलोचनाओं के घेरे में हैं।
हाल में दिए दो फैसलों में से एक में जस्टिस पुष्पा ने कहा कि नि:संदेह पीड़िता की गवाही आरोपी की दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त है। हालांकि यह इस कोर्ट को भी भरोसा करने लायक होनी चाहिए। यह वास्तविक होना चाहिए।
एक दूसरे फैसले में उन्होंने कहा कि दुष्कर्म के मामलों में केवल पीड़िता की गवाही भी आपराधिक आरोप तय करने के पर्याप्त है। हालांकि इस मामले में पीड़िता की गवाही पूर्ण विश्वास लायक नहीं है, ऐसे में याचिकाकर्ता को 10 साल के लिए जेल भेजना अन्यायपूर्ण होगा। ये दोनों फैसले उन्होंने 14 और 15 जनवरी को सुनाए थे।
उन्होंने सवाल किया कि पीड़िता का मुंह दबाना, उसके और अपने कपड़े उतारना और जबरन बिना किसी हाथापाई के दुष्कर्म करना एक अकेले व्यक्ति के लिए संभव नहीं है।
उन्होंने कहा कि अगर यह जबरन दुष्कर्म का मामला होता, तो हाथापाई होती। मेडिकल साक्ष्य भी लड़की के आरोपों के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट में किसी भी तरह की जबरदस्ती किए जाने के कोई चोट या उसके निशान नहीं पाए गए।
साथ ही उन्होंने कहा कि लड़की और उसकी मां की गवाही यह साबित नहीं कर सकी कि घटना के समय लड़की की उम्र 18 साल से कम थी। इसके अलावा, जिरह के दौरान लड़की ने स्वीकार किया कि उसने अपनी मां की जिद पर एफआईआर में उसकी उम्र 15 वर्ष घोषित की। यहां तक अदालत में प्रस्तुत जन्म प्रमाण पत्र भी लड़की की उम्र स्पष्ट नहीं कर सका और यह साबित नहीं हो पाया कि घटना के समय लड़की की उम्र 18 साल से कम थी।
उन्होंने कहा कि दोनों के बीच सहमति से शारीरिक संबंधों की बात सामने आई है। आरोपी को इस मामले में संदेह का लाभ दिया जा सकता है। जज ने कहा कि लड़की ने स्वीकार किया कि अगर उसकी मां नहीं पहुंचती तो वह शिकायत दर्ज नहीं कराती।