व्यक्ति को अपनी पसंद का नाम रखने का संविधान के तहत अधिकार : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

उत्तर प्रदेश प्रयागराज
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प्रयागराज(उप्र), 31 मई (ए) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ), अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 14 के तहत व्यक्ति को अपनी पसंद का नाम रखने या अपनी पसंद के अनुसार नाम बदलने का अधिकार है।.

यह निर्णय न्यायमूर्ति अजय भनोट की अदालत ने समीर राव नाम के एक व्यक्ति की रिट याचिका स्वीकार करते हुए दिया। यूपी बोर्ड ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा के प्रमाण पत्रों में नाम बदलने के राव के आवेदन को खारिज कर दिया था जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।.राव की याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने नाम बदलने के आवेदन को मनमाने ढंग से ठुकरा दिया और कानून की नजर में खुद को गलत दिशा दिखाई।

उच्च न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों की यह कार्रवाई भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (अ) और अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 14 के तहत याचिकाकर्ता को मिले मौलिक अधिकारों का हनन करती है।

अदालत ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद(यूपी बोर्ड), क्षेत्रीय कार्यालय, बरेली के क्षेत्रीय सचिव द्वारा 24 दिसंबर, 2020 को पारित आदेश को रद्द कर दिया और प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के नाम बदलने के आवेदन को स्वीकार करने और नए प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता ने अपना नाम शाहनवाज से बदलकर मोहम्मद समीर राव करने का प्रार्थना पत्र दिया था।

तथ्य के मुताबिक, याचिकाकर्ता का नाम माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा 2013 में जारी हाईस्कूल और 2015 में जारी इंटरमीडिएट परीक्षा प्रमाण पत्र में शाहनवाज दर्ज था। सितंबर-अक्टूबर, 2020 में उसने सार्वजनिक रूप से अपना नाम शाहनवाज से बदलकर मोहम्मद समीर राव रखने का खुलासा किया।

इसके बाद, उसने वर्ष 2020 में प्रतिवादी माध्यमिक शिक्षा परिषद के पास नाम बदलने के लिए आवेदन किया जिसे परिषद द्वारा खारिज कर दिया गया।

इस मामले में शिक्षा परिषद का कहना था कि उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा कानून, 1921 के नियमन 40 (क) के मुताबिक, नाम बदलने के लिए आवेदन परीक्षा में बैठने के तीन वर्ष के भीतर किया जाना होता है। हालांकि, इस मामले में याचिकाकर्ता द्वारा हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में बैठने के सात और पांच साल बाद आवेदन किया गया।

अदालत ने यह दलील नहीं मानी और कहा कि नियमन 40 (क) में पाबंदी मनमानी है और यह व्यक्ति को अपनी पसंद का नाम रखने या नाम बदलने के मौलिक अधिकार का हनन करती है।