नयी दिल्ली: 15 अगस्त (ए)) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने शनिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम किसी उच्च न्यायालय के कॉलेजियम को न्यायाधीश पद के लिए किसी विशेष नाम की सिफारिश करने का निर्देश नहीं दे सकता।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालय दोनों ही संवैधानिक संस्थाएं हैं, और कोई भी एक-दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है।न्यायमूर्ति गवई 79वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम में एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से आग्रह किया कि वह उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए शीर्ष अदालत के वकीलों के नामों पर भी विचार करें, भले ही उन्होंने वहां वकालत न की हो।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय का कॉलेजियम भी उच्च न्यायालय कॉलेजियम को नामों की सिफ़ारिश करने का निर्देश नहीं दे सकता… शीर्ष अदालत, उच्च न्यायालय से श्रेष्ठ नहीं है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों ही संवैधानिक अदालतें हैं और जहां तक संवैधानिक व्यवस्था का प्रश्न है, वे न तो एक-दूसरे से निम्नतर हैं और न ही श्रेष्ठ। इसलिए न्यायाधीशों की नियुक्ति पर पहला निर्णय उच्च न्यायालय कॉलेजियम को लेना होता है।’’
सीजेआई ने कहा, ‘‘हम केवल उच्च न्यायालय कॉलेजियम को नामों की सिफ़ारिश करते हैं और उनसे नामों पर विचार करने का अनुरोध करते हैं, और जब वे इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि उम्मीदवार नियुक्ति के योग्य हैं, तभी उनके नाम उच्चतम न्यायालय के पास आते हैं।’’
उन्होंने कहा कि जब पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना इसके प्रमुख थे, तब उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने उम्मीदवारों के साथ बातचीत की प्रथा शुरू की थी और यह ‘‘वास्तव में मददगार’’ साबित हुई।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उम्मीदवारों के साथ 10 मिनट, 15 मिनट या आधे घंटे की बातचीत के बाद, उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम यह पता लगा सकता है कि वे समाज में योगदान के लिए कितने उपयुक्त होंगे।
प्रधान न्यायाधीश ने झारखंड के 1855 के संथाल (हूल) विद्रोह से लेकर पश्चिमी महाराष्ट्र के ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले तक के स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्ष को भी याद किया।
उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, बीआर आंबेडकर और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के शब्दों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि देश का इतिहास लोगों को सिखाता है कि स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि नैतिक और कानूनी प्रयास भी था, जिसमें अनगिनत वकीलों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत से आज के वकीलों को मार्गदर्शन लेना चाहिए और इस परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए, ताकि वे सेवा, साहस और न्याय के प्रति प्रतिबद्धता की भावना को आत्मसात कर सकें।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘कानूनी पेशेवरों के रूप में, आपको यह समझना चाहिए कि कोई भी मामला इतना छोटा नहीं है कि उस पर ध्यान नहीं दिया जा सके।’’
उन्होंने कहा, ‘‘किसी के लिए जो मामूली विवाद या मामूली शिकायत लग सकती है, वह वास्तव में दूसरों के लिए जीवन, सम्मान या अस्तित्व का प्रश्न हो सकती है।’’
इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी उपस्थित थे।