न्यायिक परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम तीन साल वकालत की शर्त में छूट से शीर्ष अदालत का इनकार

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 14 अगस्त (ए)) उच्चतम न्यायालय ने प्रवेश स्तर की न्यायिक सेवा परीक्षाओं में विधि स्नातकों के शामिल होने के लिए न्यूनतम तीन वर्ष वकालत का मानदंड तय करने संबंधी अपने फैसले में संशोधन करने से बृहस्पतिवार को इनकार कर दिया और कहा कि इससे ‘‘भानुमती का पिटारा’’ खुल जाएगा।

उच्चतम न्यायालय मध्य प्रदेश के एक न्यायाधीश की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने अपने अनुभव को ध्यान में रखते हुए मौजूदा न्यायिक अधिकारियों को भी यह परीक्षा देने की अनुमति देने के लिए पहले के फैसले में बदलाव की मांग की थी।

प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 20 मई को कहा था कि युवा विधि स्नातक होते ही न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते हैं और प्रवेश स्तर के पदों पर आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम तीन साल वकालत करना अनिवार्य होगा।

फैसले में कहा गया था कि न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने के लिए पात्र होने से पहले वकीलों को तीन साल तक वकालत करनी होगी।

इसने विधि स्नातकों के विधि प्रशिक्षु के रूप में तीन वर्ष के अनुभव पर भी विचार करने पर सहमति व्यक्त की।

हालांकि इसने न्यायिक सेवा परीक्षा में बैठने के लिए न्यायिक अधिकारी के रूप में तीन वर्ष के अनुभव पर विचार नहीं किया था।

प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने बृहस्पतिवार को न्यायिक अधिकारियों के रूप में अनुभव पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया ताकि वे अन्य राज्यों में फिर से परीक्षा दे सकें।

प्रधान न्यायाधीश ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘‘मध्य प्रदेश में क्या गड़बड़ी है?… हम इसमें कोई बदलाव नहीं करेंगे। इससे ‘भानुमती का पिटारा’ खुल जायेगा।’’