देश की पूंजी उद्योगपतियों के हाथ बेचने की फिराक में है केन्द्र सरकार

उत्तर प्रदेश प्रयागराज
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प्रयागराज 05 फरवरी( ए)।बजट देश की सरकारी नीति का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह देश की आर्थिक हालातों के अनुरूप संसाधनों को आवंटित करने वाला राजनीतिक दस्तावेज है। इसलिए बजट केवल सरकार के आर्थिक रुझान को ही स्पष्ट नहीं करता बल्कि यह सरकार चलाने वाले दल के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक रुझानों को भी प्रदर्शित करता है। बजट देश की अर्थव्यवस्था की हालत जानने, उसकी दिशा समझने और आर्थिक बदलाव का औजार है। यह अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने की आर्थिक तौर-तरीको पर भी प्रकाश डालता है। एक ओर जहां गत शनिवार 01 फरवरी को केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2021-22 का बजट लोकसभा में पेश किया। कोरोना संबंधी लंबी भूमिका पेश करने के बाद एक ओर जहां वित्तमंत्री ने 2021-22 का बजट “आत्मनिर्भर भारत का बजट” बताया तो वहीं दूसरी ओर देखा जाय तो देश मे जहां अनुसूचित जातियों की जनसंख्या 16.6% है तो वहीं उनके ऊपर कुल बजट का 3.62% बजट आवंटित किया जा रहा है। देश मे अनुसूचित जन जातियों की जनसंख्या 8.9% है तो वही इनके ऊपर पूरे बजट का 2.30% बजट आवंटित किया है। देश मे अल्पसंख्यकों की जनसंख्या 20% है तो वहीं इनके ऊपर बजट का 0.14% बजट आवंटित किया है। देश मे ओबीसी की जनसंख्या 43% है तो वही इनके ऊपर बजट का 0.08% बजट आवंटित किया है। एक ओर जहां देश में सामान्य वर्ग की जनसंख्या 11.8% तो वही इनके ऊपर सरकार बजट का 93.86% बजट आवंटित किया है। इस बजट से साफ जग जाहिर होता है कि सरकार किसका साथ लेकर किसका विकास करना चाहती है।

गत बीस वर्षों से नेशनल कान्फेडरेशन आफ दलित-आदिवासी आर्गेनाइजेशन (नैक्डोर) दलितों, आदिवासियों, पिछड़े वर्गों व वंचित जमातों के नजरिये से केंद्रीय सरकार के बजट का विश्लेषण करता रहा है। बजट- 2021-22 पर विश्लेषणात्मक परिचर्चा में बात रखने के लिये देश के कोने-कोने से दलित-आदिवासी, ओबीसी और अल्पसंख्यक और हक वंचित समुदाय पर काम करने वाले समाजसेवी संगठनों, विषय विशेषज्ञों, राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी, अर्थशास्त्री एवं पत्रकारों को बुलाया जाता रहा है।

डा. अम्बेडकर वेलफेयर एसोसिएशन (दावा) के अध्यक्ष उच्च न्यायालय के अधिवक्ता रामबृज गौतम ने बुद्ध के चार आर्य सत्य दुःख है, दुःख का कारण है और कारण है तो उसका निवारण है और निवारण के लिये मार्ग है से बजट पर अपनी बात की शुरुआत की और वर्तमान केन्द्र सरकार की केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किये गये बजट-2021-22 पर बताया कि इस बजट में बहुजन समाज के लिए कुछ भी नहीं रखा गया है अर्थात यह बजट ऊंट के मुंह मे जीरा सुद्ध हो रहा है। बजट में जो कमियां है उसके पीछे बहुत से कारण है और उस कारण का निवारण वर्तमान केन्द्र की सरकार द्वारा सम्भव नहीं है क्योंकि इस सरकार की नीति और नियति ही साफ नहीं है। इस बजट से सरकार चंद पूजीपतियों को अमीर से और अमीर, बहुजन समाज को गरीब से और गरीब बनाना चाहती है और उसे बद से बदतर जिंदगी व्यतीत करने के लिये मजबूर कर देना चाहती है। मार्क्स ने शोषक और शोषित सर्वहारा वर्ग की बात की तो वहीं बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम साहब ने पच्चासी और पन्द्रह का नारा दिया है। केन्द्र और राज्यो में जिस दिन सर्वहारा शोषितों / बहुजनों की सत्ता हो जाएगी उसी दिन से दुःख के कारणों के निवारण के मार्ग पर चलकर नब्बे प्रतिशत बहुजनों को दुःख से मुक्ति दिलाई जा सकती है जिसके लिये सभी सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों को दोस्त और दुश्मन की पहचान करते हुये संगठित होकर अभियान चलाकर सत्ता पर काबिज होना होगा। क्योंकि “आत्मनिर्भर भारत” के बजट को पेश करते हुये वित्तमंत्री ने भारत को आत्मनिर्भरता के आधार पर वित्तीय और निर्माण के आधारभूत ढांचे को मजबूत करने के बजाय या उनकी कार्यप्रणाली सुधारने के रास्ते अपनाने के बजाय उसे निजी हाथों में सौपने का संकल्प लिया है।