गोंडा (उप्र): 11 सितंबर (ए) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने गोंडा जिले में शिक्षा विभाग में हुए फर्जीवाड़े और करोड़ों रुपये के घपले की जांच उत्तर प्रदेश विशेष कार्य बल (एसटीएफ) को सौंपने का आदेश दिया और अनामिका शुक्ला की गिरफ्तारी पर फिलहाल रोक लगा दी है।
अनामिका शुक्ला के अधिवक्ता आनंदमणि त्रिपाठी ने बताया कि उनके प्रार्थनापत्र पर बुधवार को सुनवाई करते हुए लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति रजनीश कुमार और न्यायमूर्ति राजीव सिंह ने शुक्ला की गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई की तिथि 27 अक्टूबर 2025 तक रोक लगा दी।इसके साथ ही अदालत ने प्रकरण में दर्ज दोनों मुकदमों की जांच एसटीएफ से कराए जाने का आदेश उत्तर प्रदेश सरकार को दिया।
अदालत ने कहा कि असली अनामिका शुक्ला कौन है, यह पता लगाना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति ने गोंडा के पुलिस अधीक्षक को सभी अभिलेख एसटीएफ को स्थानांतरित करने और एसटीएफ के पुलिस अधीक्षक को तेजी से विवेचना करते हुए स्थिति रिपोर्ट अदालत में दाखिल करने का आदेश दिया।
अदालत ने अनामिका शुक्ला को भी जांच में सहयोग करने का निर्देश दिया गया।
इस प्रकरण का खुलासा पहली बार 2020 में हुआ था, जब अनामिका शुक्ला के प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल कर प्रदेश के कई विद्यालयों में फर्जी तरीके से नियुक्तियां किए जाने का मामला सामने आया। उस समय सबसे बड़ी चुनौती वास्तविक अनामिका शुक्ला की पहचान करना थी।
इसी बीच, गोंडा के बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय पहुंचकर खुद को असली अनामिका शुक्ला बताते हुए एक महिला ने शिकायत दर्ज कराई कि उसने 2017 में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में नौकरी के लिए आवेदन किया था। उसे नौकरी नहीं मिली, लेकिन उसके शैक्षिक दस्तावेजों का इस्तेमाल कर 25 लोगों की नियुक्ति कर दी गई।
आरोप है कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों और कुछ बाहरी लोगों की मिलीभगत से फर्जी नियुक्तियां की गईं और वेतन के रूप में करोड़ों रुपये निकाल लिए गए।
शिकायत के आधार पर वर्ष 2020 में नगर कोतवाली में शैक्षिक प्रमाणपत्रों के दुरुपयोग का मुकदमा दर्ज हुआ और कई आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया।
इन्हीं विवादों के बीच, गोंडा के चंद्रभान दत्त लघु माध्यमिक विद्यालय, रामपुर टेंगरहा के प्राइमरी अनुभाग में अनामिका शुक्ला की सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति का मामला सामने आया। विभागीय जांच में पाया गया कि अनामिका 2017 से ही विद्यालय में कार्यरत थीं और वेतन प्राप्त कर रही थीं। यह तथ्य सामने आने पर उनकी नियुक्ति पर रोक लगा दी गई और पूरे मामले की दोबारा जांच शुरू हुई।
कुछ समय बाद यह मामला ठंडा पड़ गया, लेकिन कुछ माह पूर्व यह खुलासा हुआ कि नौ जनवरी 2025 को भी बेसिक शिक्षा विभाग के लेखाधिकारी कार्यालय से अनामिका शुक्ला को वेतन भेजा गया।
इसके बाद समाजसेवी प्रदीप कुमार पांडेय ने न्यायालय में अर्जी दायर कर आरोप लगाया कि बेसिक शिक्षा विभाग में सक्रिय एक गिरोह युवाओं की डिग्रियों का दुरुपयोग कर फर्जी नियुक्तियां करता है और वेतन के नाम पर करोड़ों रुपये का गबन करता है।
इस शिकायत में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अतुल कुमार तिवारी, वित्त एवं लेखा अधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित, लिपिक सुधीर सिंह व अनुपम पांडेय, चंद्रभान दत्त स्मारक विद्यालय के प्रबंधक दिग्विजय नाथ पांडेय और अनामिका शुक्ला समेत अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया।
अदालत के आदेश पर अगस्त 2025 में सभी के खिलाफ नगर कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ। गिरफ्तारी से बचने के लिए सभी आरोपियों ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को पहले ही अदालत से राहत मिल चुकी है, अब अनामिका शुक्ला को भी न्यायालय ने राहत दी है।