नयी दिल्ली: 16 मई (ए)।) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस को फटकार लगाई कि उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी के एक व्यक्ति के नोएडा में मृत पाए जाने के बाद दूसरे पर दोष मढ़ दिया और प्राथमिकी दर्ज नहीं की।
न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने मामले में घटनाक्रम पर ‘‘गंभीर चिंता’’ व्यक्त की, जहां दो अलग-अलग पुलिस बलों ने ‘‘यह तक नहीं सोचा कि महत्वपूर्ण फोरेंसिक और अन्य साक्ष्य अगर तुरंत एकत्र नहीं किए गए तो वे हमेशा के लिए गायब हो जाएंगे’’।
उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे स्पष्ट रूप से महसूस हुआ कि वर्तमान मामला दिल्ली पुलिस और उत्तर प्रदेश पुलिस के बीच दोष मढ़ने की प्रवृत्ति का उदाहरण है।
अदालत ने दिल्ली पुलिस को भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 103 (हत्या) और अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत ‘‘शून्य प्राथमिकी’’ दर्ज करने और एक सप्ताह के भीतर उसके द्वारा एकत्र की गई सभी सामग्री एवं साक्ष्य उत्तर प्रदेश पुलिस को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया।
अगर कोई अपराध किसी विशेष थाना के अधिकार क्षेत्र में नहीं होता है, तो शून्य प्राथमिकी दर्ज करने के बाद उसे संबंधित थाने में स्थानांतरित करना होगा जहां वास्तव में अपराध हुआ था।
अदालत का फैसला पीड़िता की बहन की याचिका पर आया, जिसने अपने 20 वर्षीय भाई हर्ष कुमार शर्मा की मौत की जांच की मांग की है। शर्मा तीन दिसंबर, 2024 को नोएडा कॉलेज से अपने दिल्ली स्थित घर नहीं लौटा था।
वह देर रात उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में किसी स्थान पर अपनी कार में मृत पाया गया था, जिसमें कथित तौर पर कार्बन मोनोऑक्साइड सिलेंडर था।
उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस को शर्मा की मौत के संबंध में बीएनएस की धारा 103 और अन्य संबंधित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने और ‘‘बिना किसी देरी या लापरवाही के’’ जांच को आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।