किसान आंदोलन: कृषि मंत्री ने कहा- कानूनों में कुछ बदलाव को तैयार सरकार,लेकिन रद्द नही होगा

राष्ट्रीय
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नई दिल्ली, 10 दिसम्बर (ए)। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने आज कहा कि सरकार ने साफ कर दिया है कि कृषि सुधार कानूनों को वापस तो नहीं लिया जाएगा लेकिन किसानों की आपत्तियों और शंकाओं को दूर करने के लिए संशोधन किए जा सकते हैं और लिखित में भरोसा दिया जा सकता है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसानों की ओर से जताई गई चिंताओं को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा कि किसान सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर विचार करें और जब भी वे बात करना चाहेंगे, सरकार तैयार है। 
कृषि मंत्री ने कृषि कानूनों के प्रावधानों के पीछे सरकार की मंशा का जिक्र करते हुए कहा कि फिर भी किसानों को कुछ आशंकाएं हो तो उन्हें दूर किया जाएगा। तोमर ने कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में जमीन पर कब्जे को लेकर किसानों की चिंता को दूर करने का प्रयास किया तो एमएसपी पर भी लिखित भरोसा देने की बात कही। इसके अलावा यह भी कहा कि किसानों के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प होगा।

कृषि मंत्री ने कहा, ”देश को अपेक्षा थी कि कानूनों के माध्यम से देश के कृषि क्षेत्र में सुधार हो। इसको लेकर विशेषज्ञों ने कई बार सिफारिशें की। सरकार की कोशिश थी कि किसान मंडी की जंजीरों से मुक्त हो और मंडी के बाहर अपना माल किसी को भी मनचाही कीमत पर बेचेने को आजाद हो। मंडी के बाहर जो ट्रेड होगा उस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। किसान को बेचने की आजादी मिल जाए, इससे किसी को क्या आपत्ति हो सकती है?” कृषि मंत्री ने कहा, ”किसानों की चिंता है कि बाहर खरीद-बिक्री पर टैक्स नहीं है और मंडियों में टैक्स है तो आने वाले समय में मंडियां प्रभावित होंगी। किसानों की आपत्ति है तो सरकार मंडी के बराबर भी मंडी के बराबर टैक्स लगाने को तैयार है।” 
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ”कॉन्ट्रैक्ट खेती कोई नया विषय नहीं है। कई राज्यों में पहले से कॉन्ट्रैक्ट खेती हो रही है, इसका अनुभव अच्छा रहा है। लेकिन इसके लिए कानून नहीं था। इसे कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है। इसमें किसान और किसान की भूमि को पूरी सुरक्षा देने का प्रबंध किया गया
कृषि मंत्री ने कहा, ”किसानों की ओर से यह भी कहा जा रहा है कि किसानों के खेतों पर उद्योगपति कब्जा कर लेंगे। हालांकि, ऐसा अनुभव कहीं नहीं हुआ फिर भी हमने कानून में प्रावधान किया है कि कॉन्ट्रैक्ट फसल के लिए ही होगा, जमीन के लिए नहीं। यदि फसल का प्रकार ऐसा ही कि खेत पर कुछ इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने की जरूरत होगी तो करार खत्म होने के बाद प्रोसेसर उसे उठा के ले जाएगा और नहीं ले जाता है तो यह किसान का होगा। किसानो की यह भी चिंता थी कि यदि उस पर प्रोसेसर ने लोन ले रखा है और वह भाग गया तो वह किसान के सिर पर आ जाएगा। इस आशंका को दूर करने के लिए हम यह प्रावधान करने को तैयार हैं कि इन्फ्रास्ट्रक्चर पर लोन नहीं लिया जा सकता है।”