नयी दिल्ली, पांच जनवरी (ए)। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने शुक्रवार को कहा कि न्यायपालिका ने लैंगिक समानता की दिशा में एक उल्लेखनीय भूमिका निभाई है और सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए सकारात्मक कदम उठाना सरकार के सभी अंगों का परम कर्तव्य है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने 28वें न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे स्मारक व्याख्यान को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए ‘‘भारतीय महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए न्यायपालिका की भूमिका’’ पर बात की और इस विषय पर अपने स्वयं के निर्णयों का उल्लेख किया।उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी की वकालत करते हुए कहा कि यह न केवल एक संवैधानिक अनिवार्यता है, बल्कि एक मजबूत, पारदर्शी, समावेशी, प्रभावी और विश्वसनीय न्यायिक प्रक्रिया के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक आवश्यक कदम भी है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय न्यायपालिका ने लैंगिक समानता के राष्ट्रीय प्रयास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’’
न्यायविद् फली एस नरीमन ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायपालिका में असहमति की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि इससे जनता यह जान पायेगी कि देश की सर्वोच्च अदालत अपना कार्य अच्छी तरह से कर रही है।
नरीमन ने पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखने वाले उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए हाल के फैसले में असहमति की कमी पर खेद व्यक्त किया।
अनुच्छेद 370 के फैसले पर उन्होंने कहा, हाल में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाए गए बहुत विस्तृत फैसले के बारे में पढ़कर उन्हें इस बात का अफसोस हुआ कि कोई असहमति नहीं थी।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि न्यायपालिका लैंगिक पक्षपाती कानूनों, नीतियों और मानदंडों को संवैधानिक जांच के दायरे में लाई है।
उन्होंने भारतीय न्यायपालिका में दिवंगत न्यायमूर्ति सुनंदा भंडारे के योगदान की सराहना करते हुए कहा, ‘‘न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी न केवल एक संवैधानिक अनिवार्यता है, बल्कि मजबूत, पारदर्शी, समावेशी, प्रभावी और विश्वसनीय न्यायिक प्रक्रिया के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक आवश्यक कदम भी है।’’
उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए लगातार और लक्षित कार्यवाही नहीं किये जाने से समानता केवल एक नारा बनकर रह जाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘हर भारतीय को जिन उपलब्धियों पर गर्व हो सकता है, उनमें से एक यह है कि हमारे पास दुनिया में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों की सबसे बड़ी संख्या है।’’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि संपत्ति के समान बंटवारे के अधिकार से पुरुषों और महिलाओं के बीच अधिक समानता को बढ़ावा दिया जा सकता है।